कृतकृत्य वेदक: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p><span class="GRef"> धवला 6/1,9-8,12/262/10 </span><span class="PrakritText">चरिमे टि्ठदखंडए णिट्ठिदे कदकरणिज्जो त्ति भण्णदि।</span> =<span class="HindiText">दर्शनमोहनीय का क्षय करने वाला कोई जीव 7वें गुणस्थान के अंतिम सातिशय भाग में कर्मों की स्थिति का कांडक घात करता है - देखें [[ क्षय ]]) तहाँ अंतिम स्थितिकांडक के समान होने पर वह ''''कृतकृत्यवेदक'''' कहलाता है। | <p><span class="GRef"> धवला 6/1,9-8,12/262/10 </span><span class="PrakritText">चरिमे टि्ठदखंडए णिट्ठिदे कदकरणिज्जो त्ति भण्णदि।</span> =<span class="HindiText">दर्शनमोहनीय का क्षय करने वाला कोई जीव 7वें गुणस्थान के अंतिम सातिशय भाग में कर्मों की स्थिति का कांडक घात करता है - देखें [[ क्षय ]]) तहाँ अंतिम स्थितिकांडक के समान होने पर वह ''''कृतकृत्यवेदक'''' कहलाता है। <span class="GRef">( लब्धिसार/ मूल/145)</span> (विशेष देखें [[ क्षय#2 | क्षय - 2]]/5)</span></p> | ||
Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
धवला 6/1,9-8,12/262/10 चरिमे टि्ठदखंडए णिट्ठिदे कदकरणिज्जो त्ति भण्णदि। =दर्शनमोहनीय का क्षय करने वाला कोई जीव 7वें गुणस्थान के अंतिम सातिशय भाग में कर्मों की स्थिति का कांडक घात करता है - देखें क्षय ) तहाँ अंतिम स्थितिकांडक के समान होने पर वह 'कृतकृत्यवेदक' कहलाता है। ( लब्धिसार/ मूल/145) (विशेष देखें क्षय - 2/5)
अधिक जानकारी के लिये देखें सम्यग्दर्शन - IV.4।