क्षायिक चारित्र: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/4/7/107/11 </span><span class="SanskritText"> पूर्वोक्तस्य दर्शनमोहत्रिकस्य चारित्रमोहस्य च पच्चविंशतिविकल्पस्य निरवशेषक्षयात् क्षायिके सम्यक्त्वचारित्रे भवत:।</span><span class="HindiText">=पूर्वोक्त (औपशमिक चारित्र का लक्षण) दर्शन मोह की तीन और चारित्र मोह की 25; इन 28 प्रकृतियों के निरवशेष विनाश से '''क्षायिक चारित्र''' होता है। | <span class="GRef"> राजवार्तिक/2/4/7/107/11 </span><span class="SanskritText"> पूर्वोक्तस्य दर्शनमोहत्रिकस्य चारित्रमोहस्य च पच्चविंशतिविकल्पस्य निरवशेषक्षयात् क्षायिके सम्यक्त्वचारित्रे भवत:।</span><span class="HindiText">=पूर्वोक्त (औपशमिक चारित्र का लक्षण) दर्शन मोह की तीन और चारित्र मोह की 25; इन 28 प्रकृतियों के निरवशेष विनाश से '''क्षायिक चारित्र''' होता है। <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/2/4/155/1 )</span> </span> | ||
Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/2/4/7/107/11 पूर्वोक्तस्य दर्शनमोहत्रिकस्य चारित्रमोहस्य च पच्चविंशतिविकल्पस्य निरवशेषक्षयात् क्षायिके सम्यक्त्वचारित्रे भवत:।=पूर्वोक्त (औपशमिक चारित्र का लक्षण) दर्शन मोह की तीन और चारित्र मोह की 25; इन 28 प्रकृतियों के निरवशेष विनाश से क्षायिक चारित्र होता है। ( सर्वार्थसिद्धि/2/4/155/1 )
देखें चारित्र - 1.20।
पुराणकोष से
नौ क्षायिक शुद्धियों में चतुर्थ क्षायिक-शुद्धि । यह चारित्रमोहनीय कर्म के पूर्ण क्षय से उत्पन्न होती है । महापुराण 24.56, 62, 317