चंद्रोदय: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक चूर्ण । इसे वैष्णवदत्त की पुत्री सुरमंजरी ने बनाया था । यह चूर्ण वातावरण को तत्काल सुगंधि से व्याप्त कर देता था । <span class="GRef"> महापुराण 75.350-357 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक चूर्ण । इसे वैष्णवदत्त की पुत्री सुरमंजरी ने बनाया था । यह चूर्ण वातावरण को तत्काल सुगंधि से व्याप्त कर देता था । <span class="GRef"> महापुराण 75.350-357 </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक पर्वत । इसी पर्वत पर कुमार जीवंधर ने वनक्रीडा की थी । यहीं एक मरणासन्न कुत्ते को नमस्कार मंत्र सुनाकर जीवंधर ने उसे यक्ष-गति प्राप्त करायी थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.359-365 </span></p> | <p id="3">(3) एक पर्वत । इसी पर्वत पर कुमार जीवंधर ने वनक्रीडा की थी । यहीं एक मरणासन्न कुत्ते को नमस्कार मंत्र सुनाकर जीवंधर ने उसे यक्ष-गति प्राप्त करायी थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.359-365 </span></p> | ||
<p id="3">(3) विनीता नगरी के राजा सुप्रभ और प्रह्लादना का पुत्र । यह सूर्योदय का सहोदर था । यह वृषभदेव के साथ दीक्षित हुआ था किंतु मुनिपद से भ्रष्ट होकर यह मरीचि का शिष्य हो गया । मरकर यह नाग नगर में राजा हरिपति की रानी मनोलूता से कुलकर नामक पुत्र हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 85.45-51 </span></p> | <p id="3">(3) विनीता नगरी के राजा सुप्रभ और प्रह्लादना का पुत्र । यह सूर्योदय का सहोदर था । यह वृषभदेव के साथ दीक्षित हुआ था किंतु मुनिपद से भ्रष्ट होकर यह मरीचि का शिष्य हो गया । मरकर यह नाग नगर में राजा हरिपति की रानी मनोलूता से कुलकर नामक पुत्र हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_85#45|पद्मपुराण - 85.45-51]] </span></p> | ||
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Revision as of 22:20, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
आचार्य प्रभाचंद्र नं.3 (ई.797) का न्याय विषयक ग्रंथ।
पुराणकोष से
(1) एक चूर्ण । इसे वैष्णवदत्त की पुत्री सुरमंजरी ने बनाया था । यह चूर्ण वातावरण को तत्काल सुगंधि से व्याप्त कर देता था । महापुराण 75.350-357
(3) एक पर्वत । इसी पर्वत पर कुमार जीवंधर ने वनक्रीडा की थी । यहीं एक मरणासन्न कुत्ते को नमस्कार मंत्र सुनाकर जीवंधर ने उसे यक्ष-गति प्राप्त करायी थी । महापुराण 75.359-365
(3) विनीता नगरी के राजा सुप्रभ और प्रह्लादना का पुत्र । यह सूर्योदय का सहोदर था । यह वृषभदेव के साथ दीक्षित हुआ था किंतु मुनिपद से भ्रष्ट होकर यह मरीचि का शिष्य हो गया । मरकर यह नाग नगर में राजा हरिपति की रानी मनोलूता से कुलकर नामक पुत्र हुआ । पद्मपुराण - 85.45-51