धनदत्त: Difference between revisions
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<p id="2">(2) राजा क्ज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । <span class="GRef"> महापुराण </span> 8.218</p> | <p id="2">(2) राजा क्ज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । <span class="GRef"> महापुराण </span> 8.218</p> | ||
<p id="3">(3) सिंधु देश की वैशाली-नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी-सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेंद्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सूकुंभोज, अकंपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चंदेना का सहोदर था । <span class="GRef"> महापुराण </span> 75.3-7</p> | <p id="3">(3) सिंधु देश की वैशाली-नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी-सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेंद्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सूकुंभोज, अकंपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चंदेना का सहोदर था । <span class="GRef"> महापुराण </span> 75.3-7</p> | ||
<p id="4">(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनंदा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था । गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी । अत: भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से वह दु:खी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अंत में एक मुनि के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर इसने अणुव्रत धारण किये और आयु के अंत में मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106. 10-22, 30-36 </span></p> | <p id="4">(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनंदा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था । गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी । अत: भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से वह दु:खी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अंत में एक मुनि के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर इसने अणुव्रत धारण किये और आयु के अंत में मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#10|पद्मपुराण - 106.10-22]], 30-36 </span></p> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
(1) जंबूद्वीप में मंगला देश के भद्रिलपुरनगर का निवासी एक वैश्य । नंदयशा इसकी पत्नी थी । इससे इसके धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हदत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरूचि ये नौ पुत्र तथा प्रियदर्शना और ज्येष्ठा दो पुत्रियां हुई थी । इस नगर के राजा मेघरथ के साथ यह अपने सभी पुत्रों सहित मंदिरस्थविर मुनि से दीक्षित हो गया था । इसकी पत्नी और दोनों पुत्रियां भी सुदर्शना आर्यिका के पास दीक्षित हो गया थी । दीक्षा के पश्चात् राजा सहित ये सभी बनारस आये । यहाँ इसे केवलज्ञान हुआ । सात वर्ष तक विहार करने के बाद आयु के अंत में राजगृह नगर के पास इसने सिद्ध-अवस्था प्राप्त की । इसके पुत्र-पुत्रियाँ और पत्नी ने भी विधिपूर्वकसन्यास धारण किया था । इसकी पत्नी ने निदान किया था कि ये सभी पुत्र-पुत्रियाँ पर जन्म में भी उसकी संतान हो । बहिनों ने निदान किया था कि अग्रिम भव में भी ये उनके भाई हो । इस प्रकार निदान-पूर्वक मरकर इसकी पत्नी पुत्र-पुत्रियाँ महापुराण कार के अनुसार आनन स्वर्ग के शातंकर विमान में और हरिवंशपुराण कार के अनुसार अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । निदान के फलस्वरूप इसकी पत्नी अंधकवृष्णि की रानी सुभद्रा हुई, दोनों बहिनें कुंती तथा माद्री और धनपाल आदि समुद्रविजय आदि नौ पुत्र हुए । महापुराण 70.182-198, हरिवंशपुराण 18.111-124
(2) राजा क्ज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । महापुराण 8.218
(3) सिंधु देश की वैशाली-नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी-सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेंद्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सूकुंभोज, अकंपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चंदेना का सहोदर था । महापुराण 75.3-7
(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनंदा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था । गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी । अत: भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से वह दु:खी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अंत में एक मुनि के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर इसने अणुव्रत धारण किये और आयु के अंत में मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । पद्मपुराण - 106.10-22, 30-36