निक्षेप 2: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.1" id="2.1"> भाव पर्यायार्थिक है और शेष तीन द्रव्यार्थिक</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.1" id="2.1"> भाव पर्यायार्थिक है और शेष तीन द्रव्यार्थिक</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/6/20/9 </span><span class="SanskritText">नयो द्विविधो द्रव्यार्थिक: पर्यायार्थिकश्च। पर्यायार्थिकनयेन भावतत्त्वमधिगंतव्यम् । इतरेषां त्रयाणां द्रव्यार्थिकनयेन, सामान्यात्मकत्वात् ।</span> =न<span class="HindiText">य दो हैं–द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। पर्यायार्थिक नय का विषय भाव निक्षेप है, और शेष तीन को द्रव्यार्थिक नय ग्रहण करता है, क्योंकि वह सामान्य रूप है। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/6/20/9 </span><span class="SanskritText">नयो द्विविधो द्रव्यार्थिक: पर्यायार्थिकश्च। पर्यायार्थिकनयेन भावतत्त्वमधिगंतव्यम् । इतरेषां त्रयाणां द्रव्यार्थिकनयेन, सामान्यात्मकत्वात् ।</span> =न<span class="HindiText">य दो हैं–द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। पर्यायार्थिक नय का विषय भाव निक्षेप है, और शेष तीन को द्रव्यार्थिक नय ग्रहण करता है, क्योंकि वह सामान्य रूप है। <span class="GRef">( धवला 1/1,1,1/ गाथा 9 सन्मति तर्क से उद्धृत/15)</span> <span class="GRef">( धवला 4/1,3,1/ गाथा 2/3)</span> <span class="GRef">( धवला 9/4,1,45/ गाथा 69/185)</span> <span class="GRef">( कषायपाहुड़ 1/1,13-14/211/ गाथा 119/260)</span> <span class="GRef">( राजवार्तिक 1/5/31/32/6 )</span> <span class="GRef">( सिद्धि विनिश्चय/ मूल/13/3/741)</span> <span class="GRef">( श्लोकवार्तिक 2/1/5/ श्लोक 69/279)</span>।<br /> | ||
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<li class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2"> भाव में कथंचित् द्रव्यार्थिकपना तथा नाम व द्रव्य में पर्यायार्थिकपना</strong> <br /> | <li class="HindiText"><strong name="2.2" id="2.2"> भाव में कथंचित् द्रव्यार्थिकपना तथा नाम व द्रव्य में पर्यायार्थिकपना</strong> <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3">नाम को द्रव्यार्थिक कहने में हेतु</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3">नाम को द्रव्यार्थिक कहने में हेतु</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 2/1/5/69/279/24 </span><span class="SanskritText">नन्वस्तु द्रव्यं शुद्धमशुद्धं च द्रव्यार्थिकनयादेशात्, नाम-स्थापने तु कथं तयो: प्रवृत्तिमारभ्य प्रागुपरमादन्वयित्वादिति ब्रूम:। न च तदसिद्धं देवदत्तं इत्यादि नाम्न: क्वचिद्बालाद्यवस्थाभेदाद्भिन्नेऽपि विच्छेदानुपपत्तेरन्वयित्वसिद्धे:। क्षेत्रपालादिस्थापनायाश्च कालभेदेऽपि तथात्वाविच्छेद: इत्यन्वयित्वमन्वयप्रत्ययविषयत्वात् । यदि पुनरनाद्यनंतांवयासत्त्वांनामस्थापनयोरनंवयित्वं तदा घटादेरपि न स्यात् । तथा च कुतो द्रव्यत्वम् । व्यवहारनयात्तस्यावांतरद्रव्यत्वे तत एव नामस्थापनयोस्तदस्तु विशेषाभावात् ।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य तो भले ही द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता से मिल जायें, किंतु नाम स्थापना द्रव्यार्थिकनय के विषय कैसे हो सकते हैं ? <strong>उत्तर</strong>–तहाँ भी प्रवृत्ति के समय से लेकर विराम या विसर्जन करने के समय तक, अन्वयपना विद्यमान है। और वह असिद्ध भी नहीं है; क्योंकि देवदत्त नाम के व्यक्ति में बालक कुमार युवा आदि अवस्था भेद होते हुए भी उस नाम का विच्छेद नहीं बनता है। | <span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 2/1/5/69/279/24 </span><span class="SanskritText">नन्वस्तु द्रव्यं शुद्धमशुद्धं च द्रव्यार्थिकनयादेशात्, नाम-स्थापने तु कथं तयो: प्रवृत्तिमारभ्य प्रागुपरमादन्वयित्वादिति ब्रूम:। न च तदसिद्धं देवदत्तं इत्यादि नाम्न: क्वचिद्बालाद्यवस्थाभेदाद्भिन्नेऽपि विच्छेदानुपपत्तेरन्वयित्वसिद्धे:। क्षेत्रपालादिस्थापनायाश्च कालभेदेऽपि तथात्वाविच्छेद: इत्यन्वयित्वमन्वयप्रत्ययविषयत्वात् । यदि पुनरनाद्यनंतांवयासत्त्वांनामस्थापनयोरनंवयित्वं तदा घटादेरपि न स्यात् । तथा च कुतो द्रव्यत्वम् । व्यवहारनयात्तस्यावांतरद्रव्यत्वे तत एव नामस्थापनयोस्तदस्तु विशेषाभावात् ।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य तो भले ही द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता से मिल जायें, किंतु नाम स्थापना द्रव्यार्थिकनय के विषय कैसे हो सकते हैं ? <strong>उत्तर</strong>–तहाँ भी प्रवृत्ति के समय से लेकर विराम या विसर्जन करने के समय तक, अन्वयपना विद्यमान है। और वह असिद्ध भी नहीं है; क्योंकि देवदत्त नाम के व्यक्ति में बालक कुमार युवा आदि अवस्था भेद होते हुए भी उस नाम का विच्छेद नहीं बनता है। <span class="GRef">( धवला 4/1,3,1/3/6 )</span>। इसी प्रकार क्षेत्रपाल आदि की स्थापना में काल भेद होते हुए भी, तिस प्रकार की स्थापनापने का अंतराल नहीं पड़ता है। ‘यह वह है’ इस प्रकार के अन्वय ज्ञान का विषय होते रहने से तहाँ भी अन्वयीपना बहुत काल तक बना रहता है। <strong>प्रश्न</strong>–परंतु नाम व स्थापना में अनादि से अनंत काल तक तो अन्वय नहीं पाया जाता ? <strong>उत्तर</strong>–इस प्रकार तो घट, मनुष्यादि को भी अन्वयपना न हो सकने से उनमें भी द्रव्यपना न बन सकेगा। <strong>प्रश्न</strong>–तहाँ तो व्यवहार नय की अपेक्षा करके अवांतर द्रव्य स्वीकार कर लेने से द्रव्यपना बन जाता है ? <strong>उत्तर</strong>–तब तो नाम व स्थापना में भी उसी व्यवहारनय की प्रधानता से द्रव्यपना हो जाओ, क्योंकि इस अपेक्षा इन दोनों में कोई भेद नहीं है।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 4/1,3,1/3/7 </span><span class="SanskritText">वाच्यवाचकशक्तिद्वयात्मकैकशब्दस्य पर्यायार्थिकनये असंभवाद्वा दव्वट्ठियणयस्सेत्ति वुच्चदे।</span> =<span class="HindiText">वाच्यवाचक दो शक्तियों वाला एक शब्द पर्यायार्थिक नय में असंभव है, इसलिए नाम द्रव्यार्थिक नय का विषय है, ऐसा कहा जाता है। | <span class="GRef"> धवला 4/1,3,1/3/7 </span><span class="SanskritText">वाच्यवाचकशक्तिद्वयात्मकैकशब्दस्य पर्यायार्थिकनये असंभवाद्वा दव्वट्ठियणयस्सेत्ति वुच्चदे।</span> =<span class="HindiText">वाच्यवाचक दो शक्तियों वाला एक शब्द पर्यायार्थिक नय में असंभव है, इसलिए नाम द्रव्यार्थिक नय का विषय है, ऐसा कहा जाता है। <span class="GRef">( धवला 9/4,1,45/186/6 )</span> (विशेष देखें [[ नय#IV.3.8.5 | नय - IV.3.8.5]])।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 10/4,2,2,2/10/2 </span><span class="</span>"> णामणिक्खेवो दव्वट्ठियणए कुदो संभवदि। एक्कम्हि चेव दव्वम्हि वट्टमाणाणं णामाणं तब्भवसामाणम्मि तीदाणागय-वट्टमाणपज्जाएसु संचरणं पडुच्च अत्तदव्वववएसम्मि अप्पहाणीकयपज्जायम्मि पउत्तिदंसणादो, जाइ-गुण-कम्मेसु वट्टमाणाणं सारिच्छसामण्णम्मि वत्तिविसेसाणुवुत्तीदो लद्धदव्वववएसम्मि अप्पहाणीकयवत्तिभावम्मि पउतिदंसणादो, सारिच्छसामण्णप्पयणामेण विणा सद्दव्ववहाराणुववत्तीदो च।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–नाम निक्षेप द्रव्यार्थिकनय में कैसे संभव है? <strong>उत्तर</strong>–चूँकि एक ही द्रव्य में रहने वाले द्रव्यवाची शब्दों की, जिसने अतीत, अनागत व वर्तमान पर्यायों में संचार करने की अपेक्षा ‘द्रव्य’ व्यपदेश को प्राप्त किया है और जो पर्याय की प्रधानता से रहित है ऐसे तद्भावसामान्य में, प्रवृत्ति देखी जाती है (अर्थात् द्रव्य से रहित केवल पर्याय में द्रव्यवाची शब्द की प्रवृत्ति नहीं होती है)।<br /> | <span class="GRef"> धवला 10/4,2,2,2/10/2 </span><span class="</span>"> णामणिक्खेवो दव्वट्ठियणए कुदो संभवदि। एक्कम्हि चेव दव्वम्हि वट्टमाणाणं णामाणं तब्भवसामाणम्मि तीदाणागय-वट्टमाणपज्जाएसु संचरणं पडुच्च अत्तदव्वववएसम्मि अप्पहाणीकयपज्जायम्मि पउत्तिदंसणादो, जाइ-गुण-कम्मेसु वट्टमाणाणं सारिच्छसामण्णम्मि वत्तिविसेसाणुवुत्तीदो लद्धदव्वववएसम्मि अप्पहाणीकयवत्तिभावम्मि पउतिदंसणादो, सारिच्छसामण्णप्पयणामेण विणा सद्दव्ववहाराणुववत्तीदो च।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–नाम निक्षेप द्रव्यार्थिकनय में कैसे संभव है? <strong>उत्तर</strong>–चूँकि एक ही द्रव्य में रहने वाले द्रव्यवाची शब्दों की, जिसने अतीत, अनागत व वर्तमान पर्यायों में संचार करने की अपेक्षा ‘द्रव्य’ व्यपदेश को प्राप्त किया है और जो पर्याय की प्रधानता से रहित है ऐसे तद्भावसामान्य में, प्रवृत्ति देखी जाती है (अर्थात् द्रव्य से रहित केवल पर्याय में द्रव्यवाची शब्द की प्रवृत्ति नहीं होती है)।<br /> | ||
(इसी प्रकार) जाति, गुण व क्रियावाची शब्दों की, जिसने व्यक्ति विशेषों में अनुवृत्ति होने से ‘द्रव्य’ व्यपदेश को प्राप्त किया है, और जो व्यक्ति भाव की प्रधानता से रहित है, ऐसे सादृश्यसामान्य में, प्रवृत्ति देखी जाती है। तथा सादृश्यसामान्यात्मक नाम के बिना शब्द व्यवहार भी घटित नहीं होता है, अत: नाम निक्षेप द्रव्यार्थिक नय में संभव है। | (इसी प्रकार) जाति, गुण व क्रियावाची शब्दों की, जिसने व्यक्ति विशेषों में अनुवृत्ति होने से ‘द्रव्य’ व्यपदेश को प्राप्त किया है, और जो व्यक्ति भाव की प्रधानता से रहित है, ऐसे सादृश्यसामान्य में, प्रवृत्ति देखी जाती है। तथा सादृश्यसामान्यात्मक नाम के बिना शब्द व्यवहार भी घटित नहीं होता है, अत: नाम निक्षेप द्रव्यार्थिक नय में संभव है। <span class="GRef">( धवला 4/1,3,1/3/6 )</span>।<br /> | ||
और भी देखें [[ निक्षेप#3 | निक्षेप - 3 ]](नाम निक्षेप को नैगम संग्रह व व्यवहार नयों का विषय बताने में हेतु। तथा द्रव्यार्थिक होते हुए भी शब्दनयों का विषय बनने में हेतु।<br /> | और भी देखें [[ निक्षेप#3 | निक्षेप - 3 ]](नाम निक्षेप को नैगम संग्रह व व्यवहार नयों का विषय बताने में हेतु। तथा द्रव्यार्थिक होते हुए भी शब्दनयों का विषय बनने में हेतु।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> यह दोषयुक्त नहीं है; क्योंकि वर्तमानपर्याय से उपलक्षित द्रव्य को भाव कहते हैं। शुद्ध द्रव्यार्थिकनय में तो क्योंकि, भूत भविष्यत् और वर्तमानरूप से काल का विभाग नहीं पाया जाता है, कारण कि वह पर्यायों की प्रधानता से होता है; इसलिए शुद्ध द्रव्यार्थिक नयों में तो भावनिक्षेप नहीं बन सकता है, क्योंकि भावनिक्षेप में वर्तमानकाल को छोड़कर अन्य काल नहीं पाये जाते हैं। परंतु व्यंजनपर्यायों की अपेक्षा भाव में द्रव्य का सद्भाव स्वीकार कर दिया जाता है, तब अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयों में भाव निक्षेप बन जाता है; क्योंकि, व्यंजनपर्याय की अपेक्षा भाव में तीनों काल संभव हैं। | <li class="HindiText"> यह दोषयुक्त नहीं है; क्योंकि वर्तमानपर्याय से उपलक्षित द्रव्य को भाव कहते हैं। शुद्ध द्रव्यार्थिकनय में तो क्योंकि, भूत भविष्यत् और वर्तमानरूप से काल का विभाग नहीं पाया जाता है, कारण कि वह पर्यायों की प्रधानता से होता है; इसलिए शुद्ध द्रव्यार्थिक नयों में तो भावनिक्षेप नहीं बन सकता है, क्योंकि भावनिक्षेप में वर्तमानकाल को छोड़कर अन्य काल नहीं पाये जाते हैं। परंतु व्यंजनपर्यायों की अपेक्षा भाव में द्रव्य का सद्भाव स्वीकार कर दिया जाता है, तब अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयों में भाव निक्षेप बन जाता है; क्योंकि, व्यंजनपर्याय की अपेक्षा भाव में तीनों काल संभव हैं। <span class="GRef">( धवला 9/4,1,48/242/8 )</span>, <span class="GRef">( धवला 10/4,2,2,3/11/1 )</span>, <span class="GRef">( धवला 14/5,6,4/3/7 )</span>। </li> | ||
<li class="HindiText"> अथवा सभी समीचीन नयों में भी क्योंकि तीनों ही कालों को स्वीकार करने में कोई विरोध नहीं है; इसलिए सभी द्रव्यार्थिक नयों मे भावनिक्षेप बन जाता है। और व्यवहार मिथ्या नयों के द्वारा किया नहीं जाता है; क्योंकि, उनका कोई विषय नहीं है। </li> | <li class="HindiText"> अथवा सभी समीचीन नयों में भी क्योंकि तीनों ही कालों को स्वीकार करने में कोई विरोध नहीं है; इसलिए सभी द्रव्यार्थिक नयों मे भावनिक्षेप बन जाता है। और व्यवहार मिथ्या नयों के द्वारा किया नहीं जाता है; क्योंकि, उनका कोई विषय नहीं है। </li> | ||
<li><span class="HindiText"> यदि कहा जाय कि भाव निक्षेप का स्वामी द्रव्यार्थिक नयों को भी मान लेने पर सन्मति तर्क के ‘णामं ठवणा’ इत्यादि (देखें [[ निक्षेप#2.1 | निक्षेप - 2.1]]) सूत्र के साथ विरोध आता है, सो यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, जो भावनिक्षेप ऋजुसूत्र नय का विषय है, उसकी अपेक्षा से सन्मति के उक्त सूत्र की प्रवृत्ति हुई है। | <li><span class="HindiText"> यदि कहा जाय कि भाव निक्षेप का स्वामी द्रव्यार्थिक नयों को भी मान लेने पर सन्मति तर्क के ‘णामं ठवणा’ इत्यादि (देखें [[ निक्षेप#2.1 | निक्षेप - 2.1]]) सूत्र के साथ विरोध आता है, सो यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, जो भावनिक्षेप ऋजुसूत्र नय का विषय है, उसकी अपेक्षा से सन्मति के उक्त सूत्र की प्रवृत्ति हुई है। <span class="GRef">( धवला 1/1,1,1/15/6 )</span>, <span class="GRef">( धवला 9/4,1,49/244/10 )</span>। अतएव नैगम संग्रह और व्यवहारनयों में सभी निक्षेप संभव हैं, यह सिद्ध होता है।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/14/2 </span><span class="PrakritText">कधं दव्वट्ठिय-णये भाव-णिक्खेवस्स संभवो। ण, वट्टमाण-पज्जायोवलक्खियं दव्वं भावो इदि दव्वट्ठिय-णयस्स वट्टमाणमवि आरंभप्पहुडि आ उवरमादो। संगहे सुद्धदव्वट्ठिए वि भावणिक्खेवस्स अत्थित्तं ण विरुज्झदे सुकुक्खि-णिक्खित्तासेस-विसेस-सत्ताए सव्व-कालमवट्ठिदाए भावब्भुवगमादो त्ति।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–द्रव्यार्थिक नय में भावनिक्षेप कैसे संभव है ?<strong> उत्तर</strong>–</span></li> | <span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/14/2 </span><span class="PrakritText">कधं दव्वट्ठिय-णये भाव-णिक्खेवस्स संभवो। ण, वट्टमाण-पज्जायोवलक्खियं दव्वं भावो इदि दव्वट्ठिय-णयस्स वट्टमाणमवि आरंभप्पहुडि आ उवरमादो। संगहे सुद्धदव्वट्ठिए वि भावणिक्खेवस्स अत्थित्तं ण विरुज्झदे सुकुक्खि-णिक्खित्तासेस-विसेस-सत्ताए सव्व-कालमवट्ठिदाए भावब्भुवगमादो त्ति।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–द्रव्यार्थिक नय में भावनिक्षेप कैसे संभव है ?<strong> उत्तर</strong>–</span></li> | ||
</ol><ol start="1"><li><span class="HindiText"> नहीं; क्योंकि वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को ही भाव कहते हैं, और वह वर्तमान पर्याय भी द्रव्य की आरंभ से लेकर अंत तक की पर्यायों में आ ही जाती है। | </ol><ol start="1"><li><span class="HindiText"> नहीं; क्योंकि वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को ही भाव कहते हैं, और वह वर्तमान पर्याय भी द्रव्य की आरंभ से लेकर अंत तक की पर्यायों में आ ही जाती है। <span class="GRef">( धवला 10/5,5,6/39/7 )</span>। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> इसी प्रकार शुद्ध-द्रव्यार्थिक रूप संग्रहनय में भी भाव निक्षेप का सद्भाव विरोध को प्राप्त नहीं होता है; क्योंकि अपनी कुक्षि में समस्त विशेष सत्ताओं को समाविष्ट करने वाली और सदा काल एक रूप से अवस्थित रहने वाली महासत्ता में ही ‘भाव’ अर्थात् पर्याय का सद्भाव माना गया है। </span></li> | <li><span class="HindiText"> इसी प्रकार शुद्ध-द्रव्यार्थिक रूप संग्रहनय में भी भाव निक्षेप का सद्भाव विरोध को प्राप्त नहीं होता है; क्योंकि अपनी कुक्षि में समस्त विशेष सत्ताओं को समाविष्ट करने वाली और सदा काल एक रूप से अवस्थित रहने वाली महासत्ता में ही ‘भाव’ अर्थात् पर्याय का सद्भाव माना गया है। </span></li> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
- निक्षेपों का द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नयों में अंतर्भाव―
- भाव पर्यायार्थिक है और शेष तीन द्रव्यार्थिक
सर्वार्थसिद्धि/1/6/20/9 नयो द्विविधो द्रव्यार्थिक: पर्यायार्थिकश्च। पर्यायार्थिकनयेन भावतत्त्वमधिगंतव्यम् । इतरेषां त्रयाणां द्रव्यार्थिकनयेन, सामान्यात्मकत्वात् । =नय दो हैं–द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। पर्यायार्थिक नय का विषय भाव निक्षेप है, और शेष तीन को द्रव्यार्थिक नय ग्रहण करता है, क्योंकि वह सामान्य रूप है। ( धवला 1/1,1,1/ गाथा 9 सन्मति तर्क से उद्धृत/15) ( धवला 4/1,3,1/ गाथा 2/3) ( धवला 9/4,1,45/ गाथा 69/185) ( कषायपाहुड़ 1/1,13-14/211/ गाथा 119/260) ( राजवार्तिक 1/5/31/32/6 ) ( सिद्धि विनिश्चय/ मूल/13/3/741) ( श्लोकवार्तिक 2/1/5/ श्लोक 69/279)।
- भाव में कथंचित् द्रव्यार्थिकपना तथा नाम व द्रव्य में पर्यायार्थिकपना
देखें निक्षेप - 3.1 (नैगम संग्रह और व्यवहार इन तीन द्रव्यार्थिक नयों में चारों निक्षेप संभव हैं, तथा ऋजुसूत्र नय में स्थापना से अतिरिक्त तीन निक्षेप संभव हैं। तीनों शब्दनयों में नाम व भाव ये दो ही निक्षेप होते हैं।)
- नाम को द्रव्यार्थिक कहने में हेतु
श्लोकवार्तिक 2/1/5/69/279/24 नन्वस्तु द्रव्यं शुद्धमशुद्धं च द्रव्यार्थिकनयादेशात्, नाम-स्थापने तु कथं तयो: प्रवृत्तिमारभ्य प्रागुपरमादन्वयित्वादिति ब्रूम:। न च तदसिद्धं देवदत्तं इत्यादि नाम्न: क्वचिद्बालाद्यवस्थाभेदाद्भिन्नेऽपि विच्छेदानुपपत्तेरन्वयित्वसिद्धे:। क्षेत्रपालादिस्थापनायाश्च कालभेदेऽपि तथात्वाविच्छेद: इत्यन्वयित्वमन्वयप्रत्ययविषयत्वात् । यदि पुनरनाद्यनंतांवयासत्त्वांनामस्थापनयोरनंवयित्वं तदा घटादेरपि न स्यात् । तथा च कुतो द्रव्यत्वम् । व्यवहारनयात्तस्यावांतरद्रव्यत्वे तत एव नामस्थापनयोस्तदस्तु विशेषाभावात् ।=प्रश्न–शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य तो भले ही द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता से मिल जायें, किंतु नाम स्थापना द्रव्यार्थिकनय के विषय कैसे हो सकते हैं ? उत्तर–तहाँ भी प्रवृत्ति के समय से लेकर विराम या विसर्जन करने के समय तक, अन्वयपना विद्यमान है। और वह असिद्ध भी नहीं है; क्योंकि देवदत्त नाम के व्यक्ति में बालक कुमार युवा आदि अवस्था भेद होते हुए भी उस नाम का विच्छेद नहीं बनता है। ( धवला 4/1,3,1/3/6 )। इसी प्रकार क्षेत्रपाल आदि की स्थापना में काल भेद होते हुए भी, तिस प्रकार की स्थापनापने का अंतराल नहीं पड़ता है। ‘यह वह है’ इस प्रकार के अन्वय ज्ञान का विषय होते रहने से तहाँ भी अन्वयीपना बहुत काल तक बना रहता है। प्रश्न–परंतु नाम व स्थापना में अनादि से अनंत काल तक तो अन्वय नहीं पाया जाता ? उत्तर–इस प्रकार तो घट, मनुष्यादि को भी अन्वयपना न हो सकने से उनमें भी द्रव्यपना न बन सकेगा। प्रश्न–तहाँ तो व्यवहार नय की अपेक्षा करके अवांतर द्रव्य स्वीकार कर लेने से द्रव्यपना बन जाता है ? उत्तर–तब तो नाम व स्थापना में भी उसी व्यवहारनय की प्रधानता से द्रव्यपना हो जाओ, क्योंकि इस अपेक्षा इन दोनों में कोई भेद नहीं है।
धवला 4/1,3,1/3/7 वाच्यवाचकशक्तिद्वयात्मकैकशब्दस्य पर्यायार्थिकनये असंभवाद्वा दव्वट्ठियणयस्सेत्ति वुच्चदे। =वाच्यवाचक दो शक्तियों वाला एक शब्द पर्यायार्थिक नय में असंभव है, इसलिए नाम द्रव्यार्थिक नय का विषय है, ऐसा कहा जाता है। ( धवला 9/4,1,45/186/6 ) (विशेष देखें नय - IV.3.8.5)।
धवला 10/4,2,2,2/10/2 <span class=""> णामणिक्खेवो दव्वट्ठियणए कुदो संभवदि। एक्कम्हि चेव दव्वम्हि वट्टमाणाणं णामाणं तब्भवसामाणम्मि तीदाणागय-वट्टमाणपज्जाएसु संचरणं पडुच्च अत्तदव्वववएसम्मि अप्पहाणीकयपज्जायम्मि पउत्तिदंसणादो, जाइ-गुण-कम्मेसु वट्टमाणाणं सारिच्छसामण्णम्मि वत्तिविसेसाणुवुत्तीदो लद्धदव्वववएसम्मि अप्पहाणीकयवत्तिभावम्मि पउतिदंसणादो, सारिच्छसामण्णप्पयणामेण विणा सद्दव्ववहाराणुववत्तीदो च। =प्रश्न–नाम निक्षेप द्रव्यार्थिकनय में कैसे संभव है? उत्तर–चूँकि एक ही द्रव्य में रहने वाले द्रव्यवाची शब्दों की, जिसने अतीत, अनागत व वर्तमान पर्यायों में संचार करने की अपेक्षा ‘द्रव्य’ व्यपदेश को प्राप्त किया है और जो पर्याय की प्रधानता से रहित है ऐसे तद्भावसामान्य में, प्रवृत्ति देखी जाती है (अर्थात् द्रव्य से रहित केवल पर्याय में द्रव्यवाची शब्द की प्रवृत्ति नहीं होती है)।
(इसी प्रकार) जाति, गुण व क्रियावाची शब्दों की, जिसने व्यक्ति विशेषों में अनुवृत्ति होने से ‘द्रव्य’ व्यपदेश को प्राप्त किया है, और जो व्यक्ति भाव की प्रधानता से रहित है, ऐसे सादृश्यसामान्य में, प्रवृत्ति देखी जाती है। तथा सादृश्यसामान्यात्मक नाम के बिना शब्द व्यवहार भी घटित नहीं होता है, अत: नाम निक्षेप द्रव्यार्थिक नय में संभव है। ( धवला 4/1,3,1/3/6 )।
और भी देखें निक्षेप - 3 (नाम निक्षेप को नैगम संग्रह व व्यवहार नयों का विषय बताने में हेतु। तथा द्रव्यार्थिक होते हुए भी शब्दनयों का विषय बनने में हेतु।
- स्थापना को द्रव्यार्थिक कहने में हेतु
देखें पहला शीर्षक नं - 3 (‘यह वही है’ इस प्रकार अन्वयज्ञान का विषय होने से स्थापना निक्षेप द्रव्यार्थिक है)।
धवला 4/1,3,1/4/2 सब्भावासब्भावसरूवेण सव्वदव्वावि त्ति वा, पधाणापधाणदव्वाणमेगत्तणिबंधणेत्ति वा ट्ठवणणिक्खेवो दव्वट्ठियणयवुल्लीणो। =स्थापना निक्षेप तदाकार और अतदाकार रूप से सर्व द्रव्यों में व्याप्य होने के कारण; अथवा प्रधान और अप्रधान द्रव्यों को एकता का कारण होने से द्रव्यार्थिकनय के अंतर्गत है।
धवला 10/4,2,2,2/10/8 कधं दव्वट्ठियणए ट्ठवणणामसंभवो। पडिणिहिज्जमाणस्स पडिणिहिणा सह एयत्तवज्झवसायादो सब्भावासब्भावट्ठवणभेएण सव्वत्थेसु अण्णयदंसणादो च। =प्रश्न–द्रव्यार्थिकनय में स्थापना निक्षेप कैसे संभव है ? उत्तर–एक तो स्थापना में प्रतिनिधीयमान की प्रतिनिधि के साथ एकता का निश्चय होता है, और दूसरे सद्भावस्थापना व असद्भावस्थापना के भेद रूप से सब पदार्थों में अन्वय देखा जाता है, इसलिए द्रव्यार्थिक नय में स्थापना निक्षेप संभव है।
धवला 9/4,1,45/186/9 कधं ट्ठवणा दव्वट्ठियविसओ। ण, अतम्हि तग्गहे संते ठवणुववत्तीदो। नहीं; क्योंकि जो वस्तु अतद्रूप है उसका तद्रूप से ग्रहण होने पर स्थापना बन सकता है।
और भी देखें निक्षेप - 3 (स्थापना निक्षेप को नैगम, संग्रह व व्यवहार नयों का विषय बताने में हेतु।)
- द्रव्यनिक्षेप को द्रव्यार्थिक कहने में हेतु
धवला 9/4,1,45/187/1 दव्वसुदणाणं पि दव्वट्ठियणयविसओ, आहाराहेयाणमेयत्तकप्पणाए दव्वसुदग्गहणादो। =द्रव्य श्रुतज्ञान (श्रुतज्ञान के प्रकरण में) भी द्रव्यार्थिकनय का विषय है; क्योंकि आधार और आधेय के एकत्व की कल्पना से द्रव्यश्रुत का ग्रहण किया गया है। (विशेष देखें निक्षेप - 3 में नैगम, संग्रह व व्यवहारनय के हेतु।)
- भावनिक्षेप को पर्यायार्थिक कहने में हेतु
धवला 9/4,1,45/187/2 भावणिक्खेवो पज्जट्ठियणयविसओ, वट्टमाणपज्जाएणुवलक्खियदव्वग्गहणादो। =भाव निक्षेप पर्यायार्थिकनय का विषय है; क्योंकि वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य का यहाँ भाव रूप से ग्रहण किया गया है। (विशेष देखें निक्षेप - 3 में ऋजुसूत्र नय में हेतु।)
- भाव निक्षेप को द्रव्यार्थिक कहने में हेतु
कषायपाहुड़/1/1,13-14/260/1 णाम-ट्ठवणा-दव्व–णिक्खेवाणं तिण्हं पि तिण्णि वि दव्वट्ठियणया सामिया होंतु णाम ण भावणिक्खेवस्स; तस्स पज्जवट्ठियणयमवलंबिय (पवट्टमाणत्तादो)...ण एस दोसो; वट्टमाणपज्जाएण उवलक्खियं दव्वं भावो णाम। अप्पट्टाणीकयपरिणामेसु सुद्धदव्वट्ठिएसु णएसु णादीदाणगयवट्टमाणकालविभागो अत्थि; तस्स पट्टाणीकयपरिणामपरिणम (णय) त्तादो। ण तदो एदेसु ताव अत्थि भावणिक्खेवो; वट्टमाणकालेण विणा अण्णकालाभावादो। वंजणपज्जाएण पादिदव्वेसु सुट्ठु असुद्धदव्वट्ठिएसु वि अत्थि भावणिक्खेवो, तत्थ वि तिकालसंभवादो। अथवा, सव्वदव्वट्ठियणएसु तिण्णि काल संभवंति; सुणएसु तदविरोहादो। ण च दुण्णएहिं ववहारो; तेसिं विसयाभावादो। ण च सम्मइसुत्तेण सह विरोहो; उज्जुसुदणयविसयभावणिक्खेवमस्सिदूण तप्पउत्तीदो। तम्हा णेगम-संग्गह-ववहारणएसु सव्वणिक्खेवा संभवंति त्ति सिद्धं। =प्रश्न–(तद्भावसामान्य व सादृश्यसामान्य को अवलंबन करके प्रवृत्त होने के कारण) नाम, स्थापना व द्रव्य इन तीनों निक्षेपों के नैगमादि तीनों ही द्रव्यार्थिकनय स्वामी होओ, परंतु भावनिक्षेप के वे स्वामी नहीं हो सकते हैं; क्योंकि, भावनिक्षेप पर्यायार्थिक नय के आश्रय से होता है (देखें निक्षेप - 2.1)। उत्तर–- यह दोषयुक्त नहीं है; क्योंकि वर्तमानपर्याय से उपलक्षित द्रव्य को भाव कहते हैं। शुद्ध द्रव्यार्थिकनय में तो क्योंकि, भूत भविष्यत् और वर्तमानरूप से काल का विभाग नहीं पाया जाता है, कारण कि वह पर्यायों की प्रधानता से होता है; इसलिए शुद्ध द्रव्यार्थिक नयों में तो भावनिक्षेप नहीं बन सकता है, क्योंकि भावनिक्षेप में वर्तमानकाल को छोड़कर अन्य काल नहीं पाये जाते हैं। परंतु व्यंजनपर्यायों की अपेक्षा भाव में द्रव्य का सद्भाव स्वीकार कर दिया जाता है, तब अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयों में भाव निक्षेप बन जाता है; क्योंकि, व्यंजनपर्याय की अपेक्षा भाव में तीनों काल संभव हैं। ( धवला 9/4,1,48/242/8 ), ( धवला 10/4,2,2,3/11/1 ), ( धवला 14/5,6,4/3/7 )।
- अथवा सभी समीचीन नयों में भी क्योंकि तीनों ही कालों को स्वीकार करने में कोई विरोध नहीं है; इसलिए सभी द्रव्यार्थिक नयों मे भावनिक्षेप बन जाता है। और व्यवहार मिथ्या नयों के द्वारा किया नहीं जाता है; क्योंकि, उनका कोई विषय नहीं है।
- यदि कहा जाय कि भाव निक्षेप का स्वामी द्रव्यार्थिक नयों को भी मान लेने पर सन्मति तर्क के ‘णामं ठवणा’ इत्यादि (देखें निक्षेप - 2.1) सूत्र के साथ विरोध आता है, सो यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, जो भावनिक्षेप ऋजुसूत्र नय का विषय है, उसकी अपेक्षा से सन्मति के उक्त सूत्र की प्रवृत्ति हुई है। ( धवला 1/1,1,1/15/6 ), ( धवला 9/4,1,49/244/10 )। अतएव नैगम संग्रह और व्यवहारनयों में सभी निक्षेप संभव हैं, यह सिद्ध होता है।
धवला 1/1,1,1/14/2 कधं दव्वट्ठिय-णये भाव-णिक्खेवस्स संभवो। ण, वट्टमाण-पज्जायोवलक्खियं दव्वं भावो इदि दव्वट्ठिय-णयस्स वट्टमाणमवि आरंभप्पहुडि आ उवरमादो। संगहे सुद्धदव्वट्ठिए वि भावणिक्खेवस्स अत्थित्तं ण विरुज्झदे सुकुक्खि-णिक्खित्तासेस-विसेस-सत्ताए सव्व-कालमवट्ठिदाए भावब्भुवगमादो त्ति। =प्रश्न–द्रव्यार्थिक नय में भावनिक्षेप कैसे संभव है ? उत्तर–
- नहीं; क्योंकि वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को ही भाव कहते हैं, और वह वर्तमान पर्याय भी द्रव्य की आरंभ से लेकर अंत तक की पर्यायों में आ ही जाती है। ( धवला 10/5,5,6/39/7 )।
- इसी प्रकार शुद्ध-द्रव्यार्थिक रूप संग्रहनय में भी भाव निक्षेप का सद्भाव विरोध को प्राप्त नहीं होता है; क्योंकि अपनी कुक्षि में समस्त विशेष सत्ताओं को समाविष्ट करने वाली और सदा काल एक रूप से अवस्थित रहने वाली महासत्ता में ही ‘भाव’ अर्थात् पर्याय का सद्भाव माना गया है।
- भाव पर्यायार्थिक है और शेष तीन द्रव्यार्थिक