प्राकार: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> समवसरण की शोभा के लिए उसके चारों ओर निर्मित ऊंची दीवार । इसमें चारों दिशाओं में गोपुरों की रचना की जाती है । प्राचीनकाल में नगरों की रक्षा के लिए भी प्राकार बनाये जाते थे । <span class="GRef"> महापुराण 16.169,19.57-62, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.49, 135, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.65 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> समवसरण की शोभा के लिए उसके चारों ओर निर्मित ऊंची दीवार । इसमें चारों दिशाओं में गोपुरों की रचना की जाती है । प्राचीनकाल में नगरों की रक्षा के लिए भी प्राकार बनाये जाते थे । <span class="GRef"> महापुराण 16.169,19.57-62, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#49|पद्मपुराण - 2.49]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#135|पद्मपुराण -2. 135]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.65 </span></p> | ||
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Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
धवला 14/5,6,42/40/7 जिणहरादीणं रक्खट्ठंप्पासेसु ट्ठविदओलित्तीओ पागारा णाम । पक्किटाहि घडिदवरंडा वा पागारा णाम । = जिनगृह आदि की रक्षा के लिए पार्श्व में जो भीतें बनायी जाती हैं वे प्राकार कहलाती हैं, अथवा पकी हुई ईंटों जो वरंडा बनाये जाते हैं वे प्राकार कहलाते हैं ।
पुराणकोष से
समवसरण की शोभा के लिए उसके चारों ओर निर्मित ऊंची दीवार । इसमें चारों दिशाओं में गोपुरों की रचना की जाती है । प्राचीनकाल में नगरों की रक्षा के लिए भी प्राकार बनाये जाते थे । महापुराण 16.169,19.57-62, पद्मपुराण - 2.49,पद्मपुराण -2. 135, हरिवंशपुराण 2.65