बाली: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> किष्किंधपुर के राजा सूर्यरज और उसकी रानी इंदुमालिनी का पुत्र । यह सुग्रीव का अग्रज एवं श्रीप्रभा का भाई था । ध्रुवा इसकी भार्या थी । भोगों को क्षणभंगुर जानकर इसने गगनचंद्र गुरु के निकट दिगंबरी दीक्षा ग्रहण की थी । यह एक समय योग धारण करके कैलाश पर्वत पर तप कर रहा था । इसके तप के प्रभाव से रावण का विमान रुक गया था जिससे कुपित होकर रावण ने पर्वत सहित इसे समुद्र में फेंकने के लिए उठा लिया था किंतु भरत के द्वारा बनवाये जिनमंदिर नष्ट न हों, इस भाव से इसने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिससे रावण भी दबने लगा था । मंदोदरी के निवेदन पर ही रावण बच सका था । जिनेंद्र के चरणों को छोड़ अन्य किसी को नमस्कार न करने की प्रतिज्ञा के पालन से ही उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई थी । रावण को दबाने के कार्य से बाद में यह दु:खी हुआ । गुरु के समक्ष प्रायश्चित्त लेकर इसने इस दुःख को दूर किया । फिर तप से कर्मों की निर्जरा करके केवली हुआ तथा निर्वाण प्राप्त किया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 9.1, 20, 78-161, 9.217-221 </span><br />पूर्वभवों में यह मेघदत्त था, पश्चात् स्वर्ग गया और वहाँ से च्युत होकर सुप्रभ हुआ फिर इस पर्याय में आया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106.187-197 <br /><br /> </span>महापुराण के अनुसार बाली का जीवन वृत्त इस प्रकार है― यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में किलकिल नगर के राजा विद्याधर बलींद्र और उसकी रानी प्रियंगुसुंदरी का ज्येष्ठ पुत्र और सुग्रीव का अग्रज था । पिता के मरने पर यह तो किलकिल नगर का राजा हुआ और सुग्रीव युवराज । इसने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया और उसका राज्य-भाग अपने राज्य में मिला लिया । वनवास की अवधि में जब राम चित्रकूट वन में थे इसने दूत के द्वारा यह कहलाया कि यह सीता की खोज के लिए स्वयं जा सकता है और रावण का मान भंग करके लंका से सीता को तत्काल ला सकता है । इसने यह भी कहलाया कि वे यह कार्य सुग्रीव और हनुमान को न दे । राम ने दूत के कथन का मंतव्य जानकर अपने मंत्रियों के परामर्श में अपने दूत के द्वारा इसे यह संदेश भेजा कि यह उन्हें अपना महामेघ हाथी समर्पित कर दे, तब वे भी इसके साथ लंका चलेंगे । इस संदेश से इसने स्वयं को अपमानित समझा और राम के दूत से कहा कि उन्हें महामेघ गज तो उससे युद्ध में विजय प्राप्त करने से ही मिल सकेगा । परिणामत: लक्ष्मण के नेतृत्व में खदिरवन में इससे राम का युद्ध हुआ जिसमें वह लक्ष्मण द्वारा मारा गया । <span class="GRef"> महापुराण </span>68.271-275, 440-464</p> | <div class="HindiText"> <p> किष्किंधपुर के राजा सूर्यरज और उसकी रानी इंदुमालिनी का पुत्र । यह सुग्रीव का अग्रज एवं श्रीप्रभा का भाई था । ध्रुवा इसकी भार्या थी । भोगों को क्षणभंगुर जानकर इसने गगनचंद्र गुरु के निकट दिगंबरी दीक्षा ग्रहण की थी । यह एक समय योग धारण करके कैलाश पर्वत पर तप कर रहा था । इसके तप के प्रभाव से रावण का विमान रुक गया था जिससे कुपित होकर रावण ने पर्वत सहित इसे समुद्र में फेंकने के लिए उठा लिया था किंतु भरत के द्वारा बनवाये जिनमंदिर नष्ट न हों, इस भाव से इसने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिससे रावण भी दबने लगा था । मंदोदरी के निवेदन पर ही रावण बच सका था । जिनेंद्र के चरणों को छोड़ अन्य किसी को नमस्कार न करने की प्रतिज्ञा के पालन से ही उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई थी । रावण को दबाने के कार्य से बाद में यह दु:खी हुआ । गुरु के समक्ष प्रायश्चित्त लेकर इसने इस दुःख को दूर किया । फिर तप से कर्मों की निर्जरा करके केवली हुआ तथा निर्वाण प्राप्त किया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#1|पद्मपुराण - 9.1]], 20, 78-161, 9.217-221 </span><br />पूर्वभवों में यह मेघदत्त था, पश्चात् स्वर्ग गया और वहाँ से च्युत होकर सुप्रभ हुआ फिर इस पर्याय में आया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#187|पद्मपुराण - 106.187-197]] <br /><br /> </span>महापुराण के अनुसार बाली का जीवन वृत्त इस प्रकार है― यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में किलकिल नगर के राजा विद्याधर बलींद्र और उसकी रानी प्रियंगुसुंदरी का ज्येष्ठ पुत्र और सुग्रीव का अग्रज था । पिता के मरने पर यह तो किलकिल नगर का राजा हुआ और सुग्रीव युवराज । इसने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया और उसका राज्य-भाग अपने राज्य में मिला लिया । वनवास की अवधि में जब राम चित्रकूट वन में थे इसने दूत के द्वारा यह कहलाया कि यह सीता की खोज के लिए स्वयं जा सकता है और रावण का मान भंग करके लंका से सीता को तत्काल ला सकता है । इसने यह भी कहलाया कि वे यह कार्य सुग्रीव और हनुमान को न दे । राम ने दूत के कथन का मंतव्य जानकर अपने मंत्रियों के परामर्श में अपने दूत के द्वारा इसे यह संदेश भेजा कि यह उन्हें अपना महामेघ हाथी समर्पित कर दे, तब वे भी इसके साथ लंका चलेंगे । इस संदेश से इसने स्वयं को अपमानित समझा और राम के दूत से कहा कि उन्हें महामेघ गज तो उससे युद्ध में विजय प्राप्त करने से ही मिल सकेगा । परिणामत: लक्ष्मण के नेतृत्व में खदिरवन में इससे राम का युद्ध हुआ जिसमें वह लक्ष्मण द्वारा मारा गया । <span class="GRef"> महापुराण </span>68.271-275, 440-464</p> | ||
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Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- बाली
पद्मपुराण/श्लोक नं.9/ किष्किंधपुर के राजा सूर्यरज का पुत्र था (1) राम व रावण के युद्ध होने पर विरक्त हो दीक्षा धारण कर ली (90) । एक समय रावण ने क्रुद्ध हो तपश्चरण करते समय इनको पर्वत सहित उठा लिया । तब मुनि बाली ने जिन मंदिर की रक्षार्थ पैर का अंगूठा दबाकर पर्वत को स्थिर किया (132) अंत में इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया (221) ।
- बाली की दीक्षा संबंधी दृष्टिभेद
पद्मपुराण/9/90 के अनुसार सुग्रीव के भाई बाली ने दीक्षा धारण कर ली थी । परंतु महापुराण/68/164 के अनुसार बाली लक्ष्मण के हाथों मारा गया था ।
पुराणकोष से
किष्किंधपुर के राजा सूर्यरज और उसकी रानी इंदुमालिनी का पुत्र । यह सुग्रीव का अग्रज एवं श्रीप्रभा का भाई था । ध्रुवा इसकी भार्या थी । भोगों को क्षणभंगुर जानकर इसने गगनचंद्र गुरु के निकट दिगंबरी दीक्षा ग्रहण की थी । यह एक समय योग धारण करके कैलाश पर्वत पर तप कर रहा था । इसके तप के प्रभाव से रावण का विमान रुक गया था जिससे कुपित होकर रावण ने पर्वत सहित इसे समुद्र में फेंकने के लिए उठा लिया था किंतु भरत के द्वारा बनवाये जिनमंदिर नष्ट न हों, इस भाव से इसने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिससे रावण भी दबने लगा था । मंदोदरी के निवेदन पर ही रावण बच सका था । जिनेंद्र के चरणों को छोड़ अन्य किसी को नमस्कार न करने की प्रतिज्ञा के पालन से ही उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई थी । रावण को दबाने के कार्य से बाद में यह दु:खी हुआ । गुरु के समक्ष प्रायश्चित्त लेकर इसने इस दुःख को दूर किया । फिर तप से कर्मों की निर्जरा करके केवली हुआ तथा निर्वाण प्राप्त किया । पद्मपुराण - 9.1, 20, 78-161, 9.217-221
पूर्वभवों में यह मेघदत्त था, पश्चात् स्वर्ग गया और वहाँ से च्युत होकर सुप्रभ हुआ फिर इस पर्याय में आया । पद्मपुराण - 106.187-197
महापुराण के अनुसार बाली का जीवन वृत्त इस प्रकार है― यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में किलकिल नगर के राजा विद्याधर बलींद्र और उसकी रानी प्रियंगुसुंदरी का ज्येष्ठ पुत्र और सुग्रीव का अग्रज था । पिता के मरने पर यह तो किलकिल नगर का राजा हुआ और सुग्रीव युवराज । इसने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया और उसका राज्य-भाग अपने राज्य में मिला लिया । वनवास की अवधि में जब राम चित्रकूट वन में थे इसने दूत के द्वारा यह कहलाया कि यह सीता की खोज के लिए स्वयं जा सकता है और रावण का मान भंग करके लंका से सीता को तत्काल ला सकता है । इसने यह भी कहलाया कि वे यह कार्य सुग्रीव और हनुमान को न दे । राम ने दूत के कथन का मंतव्य जानकर अपने मंत्रियों के परामर्श में अपने दूत के द्वारा इसे यह संदेश भेजा कि यह उन्हें अपना महामेघ हाथी समर्पित कर दे, तब वे भी इसके साथ लंका चलेंगे । इस संदेश से इसने स्वयं को अपमानित समझा और राम के दूत से कहा कि उन्हें महामेघ गज तो उससे युद्ध में विजय प्राप्त करने से ही मिल सकेगा । परिणामत: लक्ष्मण के नेतृत्व में खदिरवन में इससे राम का युद्ध हुआ जिसमें वह लक्ष्मण द्वारा मारा गया । महापुराण 68.271-275, 440-464