मतानुज्ञा: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ </span>मू./5/2/20 <span class="SanskritText">स्वपक्षदोषाभ्युपगमात् परपक्षे दोषप्रसंगो मतानुज्ञा।20।</span> = <span class="HindiText">प्रतिवादी द्वारा उठाये गये दोष को अपने पक्ष में स्वीकार करके उसका उद्धार किये बिना ही ‘तुम्हारे पक्ष में भी ऐसा ही दोष है’ इस प्रकार कहकर दूसरे के पक्ष में समान दोष उठाना मतानुज्ञा नाम का निग्रहस्थान है। | <p><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ </span>मू./5/2/20 <span class="SanskritText">स्वपक्षदोषाभ्युपगमात् परपक्षे दोषप्रसंगो मतानुज्ञा।20।</span> = <span class="HindiText">प्रतिवादी द्वारा उठाये गये दोष को अपने पक्ष में स्वीकार करके उसका उद्धार किये बिना ही ‘तुम्हारे पक्ष में भी ऐसा ही दोष है’ इस प्रकार कहकर दूसरे के पक्ष में समान दोष उठाना मतानुज्ञा नाम का निग्रहस्थान है। <span class="GRef">( श्लोकवार्तिक 4/1/33/ </span>न्या. 251/417/14 पर इसका निराकरण किया गया है)।</span></p> | ||
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Latest revision as of 22:27, 17 November 2023
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./5/2/20 स्वपक्षदोषाभ्युपगमात् परपक्षे दोषप्रसंगो मतानुज्ञा।20। = प्रतिवादी द्वारा उठाये गये दोष को अपने पक्ष में स्वीकार करके उसका उद्धार किये बिना ही ‘तुम्हारे पक्ष में भी ऐसा ही दोष है’ इस प्रकार कहकर दूसरे के पक्ष में समान दोष उठाना मतानुज्ञा नाम का निग्रहस्थान है। ( श्लोकवार्तिक 4/1/33/ न्या. 251/417/14 पर इसका निराकरण किया गया है)।