धारणा: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText" name="1" id="1"><strong> मतिज्ञान विषयक धारणा का लक्षण</strong> </span><br>ष.खं.१३/५,५/सूत्र ४०/२४३ <span class="PrakritText">धरणी धारणा ट्ठवणा कोट्ठा पदिट्ठा।</span> =<span class="HindiText">धरणी, धारणा, स्थापना, कोष्ठा और प्रतिष्ठा ये एकार्थ नाम हैं। </span><br>स.सि./१/१५/१११/७<span class="SanskritText"> अवेतस्य कालान्तरेऽविस्मरणकारणं धारणा। यथा‒सैवेयं बलाका पूर्वाह्णे यामहमद्राक्षमिति।</span>=<span class="HindiText">अवाय ज्ञान के द्वारा जानी गयी वस्तु का जिस (संस्कारके ध./१) कारण से कालान्तर में विस्मरण नहीं होता उसे धारणा कहते हैं। (रा.वा.१/१५/४/६०/८); (ध.१/१,१,११५/३५४/४); (ध.६/१,९-१,१४/१८/७); (ध.९/४,१,४५/१४४/७), (ध.१३/५,५,३३/२३३/४); (गो.जी./मू.३०९/६६५), (न्या.दी./२/११/३२/७) </span></li> | |||
<li><span class="HindiText" name="2" id="2"><strong> धारणा ईहा व अवायरूप नहीं है</strong> | |||
</span><br>ध.१३/५,५,३३/२३३/१<span class="PrakritText"> धारणापच्चओ किं ववसायसरूवो किं णिच्छयसरूवो त्ति। पढमपक्खे धारणेहापच्चयाणमेयत्तं, भेदाभावादो। विदिए धारणावायपच्चयाणमेयत्तं, णिच्छयेभावेण दोण्णं भेदाभावादो त्ति। ण एस दोसो, अवेदवत्थुलिंगग्गहणदुवारेण कालंतरे अविस्मरणहेदुसंस्कारजण्णं विण्णाणं धारणेत्ति अब्भुवगमादो। </span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>‒धारणा ज्ञान क्या व्यवसायरूप है या क्या निश्चयस्वरूप है? प्रथमपक्ष के स्वीकार करने पर धारणा और ईहा ज्ञान एक हो जाते हैं, क्योंकि उनमें कोई भेद नहीं रहता। दूसरे पक्ष के स्वीकार करने पर धारणा और अवाय ये दोनों ज्ञान एक हो जाते हैं, क्योंकि निश्चयभाव की अपेक्षा दोनों में कोई भेद नहीं है ? <strong>उत्तर</strong>‒यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि अवाय के द्वारा वस्तु के लिंग को ग्रहण करके उसके द्वारा कालान्तर में अविस्मरण के कारणभूत संस्कार को उत्पन्न करने वाला विज्ञान धारणा है, ऐसा स्वीकार किया है। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText" name="3" id="3"><strong> धारणा अप्रमाण नहीं है</strong></span><br> | |||
ध.१३/५,५,३३/२३३/५ <span class="PrakritText">ण चेदं गहिदग्गाहि त्ति अप्पमाणं, अविस्सरणहुदुलिंगग्गाहिस्स गहिदगहणत्ताभावादो।</span>=<span class="HindiText">यह गृहीतग्राही होने से अप्रमाण है, ऐसा नहीं माना जा सकता है; क्योंकि अविस्मरण के हेतुभूत लिंग को ग्रहण करने वाला होने से यह गृहीतग्राही नहीं हो सकता। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText" name="4" id="4"><strong> ध्यान विषयक धारणा का लक्षण</strong></span><br>म.पु./२१/२२७ <span class="SanskritText">धारणा श्रुतनिर्दिष्टवीजानामवधारणम् ।</span>=<span class="HindiText">शास्त्रों में बतलाये हुए बीजाक्षरों का अवधारण करना धारणा है। </span>स.सा./ता.वृ./३०६/३८८/११ <span class="PrakritText">पञ्चनमस्कारप्रभृतिमन्त्रप्रतिमादिबहिर्द्रव्यावलम्बनेन चित्तस्थितीकरणं धारणा। </span>=<span class="HindiText">पंचनमस्कार आदि मन्त्र तथा प्रतिमा आदि बाह्य द्रव्यों के आलम्बन से चित्त को स्थिर करना धारणा है। </span></li> | |||
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<li class="HindiText"> धारणा के ज्ञानपने की सिद्धि।‒ देखें - [[ ईहा#3 | ईहा / ३ ]]।</li> | |||
<li class="HindiText"> धारणा व श्रुतज्ञान में अन्तर।‒ देखें - [[ श्रुतज्ञान#I.3 | श्रुतज्ञान / I / ३ ]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> धारणाज्ञान को मतिज्ञान कहने सम्बन्धी शंका समाधान‒ देखें - [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान / ३ ]]।</li> | |||
<li class="HindiText"> अवग्रह आदि तीनों ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम।‒ देखें - [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान / ३ ]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> धारणा ज्ञान का जघन्य व उत्कृष्ट काल।‒ देखें - [[ ऋद्धि#2.3 | ऋद्धि / २ / ३ ]]।</li> | |||
<li class="HindiText"> ध्यान योग्य पाच धारणाओं का निर्देश।‒देखें - [[ पिण्डस्थ | पिण्डस्थ। ]]</li> | |||
<li class="HindiText"> आग्नेयी आदि धारणाओं का स्वरूप।‒दे०वह वह नाम।</li> | |||
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Revision as of 17:15, 25 December 2013
- मतिज्ञान विषयक धारणा का लक्षण
ष.खं.१३/५,५/सूत्र ४०/२४३ धरणी धारणा ट्ठवणा कोट्ठा पदिट्ठा। =धरणी, धारणा, स्थापना, कोष्ठा और प्रतिष्ठा ये एकार्थ नाम हैं।
स.सि./१/१५/१११/७ अवेतस्य कालान्तरेऽविस्मरणकारणं धारणा। यथा‒सैवेयं बलाका पूर्वाह्णे यामहमद्राक्षमिति।=अवाय ज्ञान के द्वारा जानी गयी वस्तु का जिस (संस्कारके ध./१) कारण से कालान्तर में विस्मरण नहीं होता उसे धारणा कहते हैं। (रा.वा.१/१५/४/६०/८); (ध.१/१,१,११५/३५४/४); (ध.६/१,९-१,१४/१८/७); (ध.९/४,१,४५/१४४/७), (ध.१३/५,५,३३/२३३/४); (गो.जी./मू.३०९/६६५), (न्या.दी./२/११/३२/७) - धारणा ईहा व अवायरूप नहीं है
ध.१३/५,५,३३/२३३/१ धारणापच्चओ किं ववसायसरूवो किं णिच्छयसरूवो त्ति। पढमपक्खे धारणेहापच्चयाणमेयत्तं, भेदाभावादो। विदिए धारणावायपच्चयाणमेयत्तं, णिच्छयेभावेण दोण्णं भेदाभावादो त्ति। ण एस दोसो, अवेदवत्थुलिंगग्गहणदुवारेण कालंतरे अविस्मरणहेदुसंस्कारजण्णं विण्णाणं धारणेत्ति अब्भुवगमादो। =प्रश्न‒धारणा ज्ञान क्या व्यवसायरूप है या क्या निश्चयस्वरूप है? प्रथमपक्ष के स्वीकार करने पर धारणा और ईहा ज्ञान एक हो जाते हैं, क्योंकि उनमें कोई भेद नहीं रहता। दूसरे पक्ष के स्वीकार करने पर धारणा और अवाय ये दोनों ज्ञान एक हो जाते हैं, क्योंकि निश्चयभाव की अपेक्षा दोनों में कोई भेद नहीं है ? उत्तर‒यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि अवाय के द्वारा वस्तु के लिंग को ग्रहण करके उसके द्वारा कालान्तर में अविस्मरण के कारणभूत संस्कार को उत्पन्न करने वाला विज्ञान धारणा है, ऐसा स्वीकार किया है। - धारणा अप्रमाण नहीं है
ध.१३/५,५,३३/२३३/५ ण चेदं गहिदग्गाहि त्ति अप्पमाणं, अविस्सरणहुदुलिंगग्गाहिस्स गहिदगहणत्ताभावादो।=यह गृहीतग्राही होने से अप्रमाण है, ऐसा नहीं माना जा सकता है; क्योंकि अविस्मरण के हेतुभूत लिंग को ग्रहण करने वाला होने से यह गृहीतग्राही नहीं हो सकता। - ध्यान विषयक धारणा का लक्षण
म.पु./२१/२२७ धारणा श्रुतनिर्दिष्टवीजानामवधारणम् ।=शास्त्रों में बतलाये हुए बीजाक्षरों का अवधारण करना धारणा है। स.सा./ता.वृ./३०६/३८८/११ पञ्चनमस्कारप्रभृतिमन्त्रप्रतिमादिबहिर्द्रव्यावलम्बनेन चित्तस्थितीकरणं धारणा। =पंचनमस्कार आदि मन्त्र तथा प्रतिमा आदि बाह्य द्रव्यों के आलम्बन से चित्त को स्थिर करना धारणा है। - अन्य सम्बन्धित विषय
- धारणा के ज्ञानपने की सिद्धि।‒ देखें - ईहा / ३ ।
- धारणा व श्रुतज्ञान में अन्तर।‒ देखें - श्रुतज्ञान / I / ३ ।
- धारणाज्ञान को मतिज्ञान कहने सम्बन्धी शंका समाधान‒ देखें - मतिज्ञान / ३ ।
- अवग्रह आदि तीनों ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम।‒ देखें - मतिज्ञान / ३ ।
- धारणा ज्ञान का जघन्य व उत्कृष्ट काल।‒ देखें - ऋद्धि / २ / ३ ।
- ध्यान योग्य पाच धारणाओं का निर्देश।‒देखें - पिण्डस्थ।
- आग्नेयी आदि धारणाओं का स्वरूप।‒दे०वह वह नाम।