रत्नत्रय: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p>सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र । इनमें सम्यग्दर्शन को ज्ञान और चारित्र का बीज कहा है । <span class="GRef"> (महापुराण 4.157, 11. 59), </span><span class="GRef"> (पद्मपुराण 4.56), </span><span class="GRef"> (वीरवर्द्धमान चरित्र 18.2-3, 6, 10-11) </span></p> | <div class="HindiText"> <p>सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र । इनमें सम्यग्दर्शन को ज्ञान और चारित्र का बीज कहा है । <span class="GRef"> (महापुराण 4.157, 11. 59), </span><span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_4#56|पद्मपुराण - 4.56]]), </span><span class="GRef"> (वीरवर्द्धमान चरित्र 18.2-3, 6, 10-11) </span></p> | ||
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Revision as of 22:35, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यग्चारित्र इन तीन गुणों को रत्नत्रय कहते हैं । इनके विकल्प रूप से धारण करना भेद रत्नत्रय है और निर्विकल्प रूप से धारण करना अभेद रत्नत्रय है । अर्थात् सात तत्त्वों व देव, शास्त्र व गुरु आदि की श्रद्धा, आगम का ज्ञान व व्रतादि चारित्र तो भेद रत्नत्रय है और आत्म - स्वरूप की श्रद्धा, इसी का स्वसंवेदन ज्ञान और इसी में निश्चल स्थिति या निर्विकल्प समाधि अभेद रत्नत्रय है । रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है । भेद रत्नत्रय व्यवहार मोक्षमार्ग और अभेद रत्नत्रय निश्चय मोक्षमार्ग है ।
- अधिक जानकारी के लिए देखें मोक्षमार्ग ।
पुराणकोष से
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र । इनमें सम्यग्दर्शन को ज्ञान और चारित्र का बीज कहा है । (महापुराण 4.157, 11. 59), (पद्मपुराण - 4.56), (वीरवर्द्धमान चरित्र 18.2-3, 6, 10-11)