वायुवावर्त: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> वायुकुमार जाति का एक भवनवासी देव । पूर्वभव में यह अयोध्या में विंध्य धनवान का भैंसा था । यह तीव्र रोग हो जाने से नगर के बीच मरा । अकाम-निर्जरा पूर्वक मरण होने से वह देव हुआ । इस पर्याय में वह अश्व चिह्न से चिह्नित था । वायुकुमार देवों का राजा और श्रेयस्करपुर का स्वामी था । यह रसातल में रहता था स्वच्छंदता से अपनी क्रियाएँ करता था । इसने अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव को जान लिया था । अयोध्या के लोगों ने उसकी तनिक भी चिंता न की थी यह भी उसे याद हो आया था । अत वैर-वश अयोध्या में इसने अनेक रोग उत्पन्न करने वाली वायु चलाई थी । इसका विशल्या के स्नान-जल से क्षणभर में नाश हो गया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 64.101-111 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> वायुकुमार जाति का एक भवनवासी देव । पूर्वभव में यह अयोध्या में विंध्य धनवान का भैंसा था । यह तीव्र रोग हो जाने से नगर के बीच मरा । अकाम-निर्जरा पूर्वक मरण होने से वह देव हुआ । इस पर्याय में वह अश्व चिह्न से चिह्नित था । वायुकुमार देवों का राजा और श्रेयस्करपुर का स्वामी था । यह रसातल में रहता था स्वच्छंदता से अपनी क्रियाएँ करता था । इसने अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव को जान लिया था । अयोध्या के लोगों ने उसकी तनिक भी चिंता न की थी यह भी उसे याद हो आया था । अत वैर-वश अयोध्या में इसने अनेक रोग उत्पन्न करने वाली वायु चलाई थी । इसका विशल्या के स्नान-जल से क्षणभर में नाश हो गया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_64#101|पद्मपुराण - 64.101-111]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Revision as of 22:35, 17 November 2023
वायुकुमार जाति का एक भवनवासी देव । पूर्वभव में यह अयोध्या में विंध्य धनवान का भैंसा था । यह तीव्र रोग हो जाने से नगर के बीच मरा । अकाम-निर्जरा पूर्वक मरण होने से वह देव हुआ । इस पर्याय में वह अश्व चिह्न से चिह्नित था । वायुकुमार देवों का राजा और श्रेयस्करपुर का स्वामी था । यह रसातल में रहता था स्वच्छंदता से अपनी क्रियाएँ करता था । इसने अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव को जान लिया था । अयोध्या के लोगों ने उसकी तनिक भी चिंता न की थी यह भी उसे याद हो आया था । अत वैर-वश अयोध्या में इसने अनेक रोग उत्पन्न करने वाली वायु चलाई थी । इसका विशल्या के स्नान-जल से क्षणभर में नाश हो गया था । पद्मपुराण - 64.101-111