शासन दिवस: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/ </span>गा.52-57/61-63 <span class="PrakritGatha">पंचसेलपुरे सम्मे विउले पव्वदुत्तमे। ...।52। महावीरेणत्थो कहिओ भवियलोयस्स ।53। ... इम्मिस्से वसिप्पिणीए चउत्थ-समयस्स पच्छिमे भाए। चोत्तीसवाससेसे किंचि विसेसूणए संते।55। वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्हि सावणे बहुले। पाडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्हि।56।57।</span> = <span class="HindiText">पंचशैलपुर में (राजगृह में) रमणीक, विपुल व उत्तम, ऐसे विपुलाचल नाम के पर्वत के ऊपर भगवान् महावीर ने भव्य जीवों को उपदेश दिया।52। इस अवसर्पिणी कल्पकाल के दुःषमा-सुषमा नाम के चौथे काल के पिछले भाग में कुछ कम 34 वर्ष बाकी रहने पर, वर्ष के प्रथम मास अर्थात् श्रावण मास में प्रथम अर्थात् कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन प्रात:काल के समय आकाश में अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर तीर्थ की उत्पत्ति हुई।55-56। | <span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/ </span>गा.52-57/61-63 <span class="PrakritGatha">पंचसेलपुरे सम्मे विउले पव्वदुत्तमे। ...।52। महावीरेणत्थो कहिओ भवियलोयस्स ।53। ... इम्मिस्से वसिप्पिणीए चउत्थ-समयस्स पच्छिमे भाए। चोत्तीसवाससेसे किंचि विसेसूणए संते।55। वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्हि सावणे बहुले। पाडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्हि।56।57।</span> = <span class="HindiText">पंचशैलपुर में (राजगृह में) रमणीक, विपुल व उत्तम, ऐसे विपुलाचल नाम के पर्वत के ऊपर भगवान् महावीर ने भव्य जीवों को उपदेश दिया।52। इस अवसर्पिणी कल्पकाल के दुःषमा-सुषमा नाम के चौथे काल के पिछले भाग में कुछ कम 34 वर्ष बाकी रहने पर, वर्ष के प्रथम मास अर्थात् श्रावण मास में प्रथम अर्थात् कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन प्रात:काल के समय आकाश में अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर तीर्थ की उत्पत्ति हुई।55-56। <span class="GRef">( धवला 9/4,1,44/ </span>गा.29/120), <span class="GRef">( कषायपाहुड़/1/1-1/56/ </span>गा.20/74)। देखें [[ महावीर#2 | महावीर - 2]]।</span><br /> | ||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 22:35, 17 November 2023
धवला 1/1,1,1/ गा.52-57/61-63 पंचसेलपुरे सम्मे विउले पव्वदुत्तमे। ...।52। महावीरेणत्थो कहिओ भवियलोयस्स ।53। ... इम्मिस्से वसिप्पिणीए चउत्थ-समयस्स पच्छिमे भाए। चोत्तीसवाससेसे किंचि विसेसूणए संते।55। वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्हि सावणे बहुले। पाडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्हि।56।57। = पंचशैलपुर में (राजगृह में) रमणीक, विपुल व उत्तम, ऐसे विपुलाचल नाम के पर्वत के ऊपर भगवान् महावीर ने भव्य जीवों को उपदेश दिया।52। इस अवसर्पिणी कल्पकाल के दुःषमा-सुषमा नाम के चौथे काल के पिछले भाग में कुछ कम 34 वर्ष बाकी रहने पर, वर्ष के प्रथम मास अर्थात् श्रावण मास में प्रथम अर्थात् कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन प्रात:काल के समय आकाश में अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर तीर्थ की उत्पत्ति हुई।55-56। ( धवला 9/4,1,44/ गा.29/120), ( कषायपाहुड़/1/1-1/56/ गा.20/74)। देखें महावीर - 2।