सुकेतु: Difference between revisions
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<p id="4">(4) धर्म नारायण के दूसरे पूर्वभव का जीव । यह श्रावस्ती नगरी का राजा था । जुए में अपना सब कुछ हार जाने से शोक से व्याकुलित होकर इसने दीक्षा ले ली थी तथा कठिन तपश्चरण करने से कला, गुण, चतुरता और बल प्रकट होने का निदान करके यह संन्यास-मरण करके लांतव स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 59.72, 81-85, </span>देखें [[ धर्म#3 | धर्म - 3]]</p> | <p id="4">(4) धर्म नारायण के दूसरे पूर्वभव का जीव । यह श्रावस्ती नगरी का राजा था । जुए में अपना सब कुछ हार जाने से शोक से व्याकुलित होकर इसने दीक्षा ले ली थी तथा कठिन तपश्चरण करने से कला, गुण, चतुरता और बल प्रकट होने का निदान करके यह संन्यास-मरण करके लांतव स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 59.72, 81-85, </span>देखें [[ धर्म#3 | धर्म - 3]]</p> | ||
<p id="5">(5) एक विद्याधर । पद्म चक्रवर्ती ने अपनी आठों पुत्रियों का विवाह इसी के पुत्रों के साथ किया था । <span class="GRef"> महापुराण 66.76-80 </span></p> | <p id="5">(5) एक विद्याधर । पद्म चक्रवर्ती ने अपनी आठों पुत्रियों का विवाह इसी के पुत्रों के साथ किया था । <span class="GRef"> महापुराण 66.76-80 </span></p> | ||
<p id="6">(6) गंधवती नगरी के सोम पुरोहित का ज्येष्ठ पुत्र । यह प्रेमवश अपने भाई अग्निकेतु के साथ ही शयन किया करता था । विवाहित होने पर पृथक्-पृथक् शय्या किये जाने पर प्रतिबोध को प्राप्त होकर इसने अनंतवीर्य मुनि से दीक्षा ले ली । इसका भाई प्रथम तो तापस हो गया था, किंतु बाद में इसके द्वारा समझाये जाने पर उसने भी दिगंबरी दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 41.115-136 </span></p> | <p id="6">(6) गंधवती नगरी के सोम पुरोहित का ज्येष्ठ पुत्र । यह प्रेमवश अपने भाई अग्निकेतु के साथ ही शयन किया करता था । विवाहित होने पर पृथक्-पृथक् शय्या किये जाने पर प्रतिबोध को प्राप्त होकर इसने अनंतवीर्य मुनि से दीक्षा ले ली । इसका भाई प्रथम तो तापस हो गया था, किंतु बाद में इसके द्वारा समझाये जाने पर उसने भी दिगंबरी दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_41#115|पद्मपुराण - 41.115-136]] </span></p> | ||
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Revision as of 22:36, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
महापुराण/59/श्लोक नं.
श्रावस्ती नगरी का राजा था (72)। जुए में सर्वस्व हारने पर दीक्षा ग्रहणकर कठिन तप किया। (82-83) कला, चतुरता आदि गुणों का निदान कर लांतव स्वर्ग में देव हुआ (85) यह धर्म नारायण का पूर्व का दूसरा भव है-देखें धर्म ।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की मृणालवती नगरी का राजा । इसने अर्ककीर्ति और जयकुमार के बीच हुए युद्ध में जयकुमार का पक्ष लिया था । यह मुकुटबद्ध राजा था । महापुराण 44.106-107, पांडवपुराण 3. 94-95, 187-188
(2) मृणालवती नगरी का एक सेठ । यह रतिवर्मा का पुत्र था । इसकी सी कनकश्री और पुत्र भवदेव था । महापुराण 46. 103-104
(3) विजयार्ध पर्वत पर स्थित रथनूपुर नगर का राजा । कृष्ण की पटरानी सत्यभामा इसकी पुत्री थी । महापुराण 71.301, 313, हरिवंशपुराण 36.56, 61
(4) धर्म नारायण के दूसरे पूर्वभव का जीव । यह श्रावस्ती नगरी का राजा था । जुए में अपना सब कुछ हार जाने से शोक से व्याकुलित होकर इसने दीक्षा ले ली थी तथा कठिन तपश्चरण करने से कला, गुण, चतुरता और बल प्रकट होने का निदान करके यह संन्यास-मरण करके लांतव स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 59.72, 81-85, देखें धर्म - 3
(5) एक विद्याधर । पद्म चक्रवर्ती ने अपनी आठों पुत्रियों का विवाह इसी के पुत्रों के साथ किया था । महापुराण 66.76-80
(6) गंधवती नगरी के सोम पुरोहित का ज्येष्ठ पुत्र । यह प्रेमवश अपने भाई अग्निकेतु के साथ ही शयन किया करता था । विवाहित होने पर पृथक्-पृथक् शय्या किये जाने पर प्रतिबोध को प्राप्त होकर इसने अनंतवीर्य मुनि से दीक्षा ले ली । इसका भाई प्रथम तो तापस हो गया था, किंतु बाद में इसके द्वारा समझाये जाने पर उसने भी दिगंबरी दीक्षा ले ली थी । पद्मपुराण - 41.115-136