संयोग संबंध: Difference between revisions
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<p> <span class="SanskritText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/5/19/27/12 </span>अप्राप्तिपूर्विका हि प्राप्ति: संयोग:।</span> =<span class="HindiText">आपके (वैशेषिकों के मत में) अप्राप्ति पूर्वक प्राप्ति को संयोग कहा है। (स.म./27/302/29)।</span></p> | <p> <span class="SanskritText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/5/19/27/12 </span>अप्राप्तिपूर्विका हि प्राप्ति: संयोग:।</span> =<span class="HindiText">आपके (वैशेषिकों के मत में) अप्राप्ति पूर्वक प्राप्ति को संयोग कहा है। (स.म./27/302/29)।</span></p> | ||
<p> <span class="PrakritText"><span class="GRef"> धवला 15/24/2 </span>को संजोगो। पुधप्पसिद्धाण मेलणं संजोगो। | <p> <span class="PrakritText"><span class="GRef"> धवला 15/24/2 </span>को संजोगो। पुधप्पसिद्धाण मेलणं संजोगो। |
Revision as of 22:36, 17 November 2023
1. लक्षण सामान्य
सर्वार्थसिद्धि/6/9/326/7 संयुजाते इति संयोगो मिश्रीकृतम् । =संयोग का अर्थ मिश्रित करना अर्थात् मिलाना है। ( राजवार्तिक/6/9/2/516/1 )।
राजवार्तिक/5/19/27/12 अप्राप्तिपूर्विका हि प्राप्ति: संयोग:। =आपके (वैशेषिकों के मत में) अप्राप्ति पूर्वक प्राप्ति को संयोग कहा है। (स.म./27/302/29)।
धवला 15/24/2 को संजोगो। पुधप्पसिद्धाण मेलणं संजोगो। =पृथक् सिद्ध पदार्थों के मेल को संयोग कहते हैं।
मू.आ./48 की वसुनंदि कृत टीका - अनात्मीयस्यात्मभाव: संयोग:। =अनात्मीय पदार्थों में आत्मभाव होना संयोग है।
देखें द्रव्य - 1.10 [पृथक् सत्ताधारी पदार्थों के संयोग से संयोग द्रव्य बनते हैं, जैसे छत्री, मौली आदि]।
2. संयोग के भेद व उनके लक्षण
धवला 14/5,6,23/27/3 तत्थ संजोगो दुविहो देसपच्चासक्तिकओ गुणपच्चासत्तिकओ चेदि। तत्थ देसपच्चासत्तिकओ णाम दोण्णं दव्वाणमवयवफासं काऊण जमच्छणं सो देसपच्चासत्तिकओ संजोगो। गुणेहि जमण्णोण्णाणुहरणं सो गुणपच्चासत्तिकओ संजोगो। =संयोग दो प्रकार का है - देशप्रत्यासत्तिकृत संयोगसंबंध और गुणप्रत्यासत्तिकृत संयोगसंबंध। देशप्रत्यासत्ति कृतक का अर्थ है दो द्रव्यों के अवयवों का संबद्ध होकर रहना, यह देशप्रत्यासत्तिकृत संयोग है। गुणों द्वारा जो परस्पर एक दूसरे को ग्रहण करना वह गुणप्रत्यासत्तिकृत संयोगसंबंध है।
* संयोग व बंध में अंतर - देखें युति ।
* द्रव्य गुण पर्याय में संयोग संबंध का निरास - देखें द्रव्य - 4।