अशोकवन: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) संख्यात द्वीपों के अनंतर जंबूद्वीप के समान दूसरे जंबूद्वीप की पूर्व दिशा में स्थित विजयदेव के नगर से बाहर पच्चीस योजन आगे के चार वनों मे एक वन । यह बारह योजन लंबा और पाँच सौ योजन चौड़ा है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.397,421-426 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) संख्यात द्वीपों के अनंतर जंबूद्वीप के समान दूसरे जंबूद्वीप की पूर्व दिशा में स्थित विजयदेव के नगर से बाहर पच्चीस योजन आगे के चार वनों मे एक वन । यह बारह योजन लंबा और पाँच सौ योजन चौड़ा है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#397|हरिवंशपुराण - 5.397]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#421|421-426]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) समवसरण के चार वनों मे प्रथम वन । यह लालरंग के फूल और पत्तों से युक्त अशोक के वृक्षों से विभूषित होता है । यहाँ प्राणियों का शोक नष्ट हो जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 22.180 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) समवसरण के चार वनों मे प्रथम वन । यह लालरंग के फूल और पत्तों से युक्त अशोक के वृक्षों से विभूषित होता है । यहाँ प्राणियों का शोक नष्ट हो जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 22.180 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अयोध्या के राजा अजितंजय की कैवल्यभूमि । <span class="GRef"> महापुराण 54. 94-95 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) अयोध्या के राजा अजितंजय की कैवल्यभूमि । <span class="GRef"> महापुराण 54. 94-95 </span></p> | ||
<p id="4">(4) चंदना की क्रीडा-स्थली । <span class="GRef"> महापुराण 75.37 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) चंदना की क्रीडा-स्थली । <span class="GRef"> महापुराण 75.37 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
(1) संख्यात द्वीपों के अनंतर जंबूद्वीप के समान दूसरे जंबूद्वीप की पूर्व दिशा में स्थित विजयदेव के नगर से बाहर पच्चीस योजन आगे के चार वनों मे एक वन । यह बारह योजन लंबा और पाँच सौ योजन चौड़ा है । हरिवंशपुराण - 5.397, 421-426
(2) समवसरण के चार वनों मे प्रथम वन । यह लालरंग के फूल और पत्तों से युक्त अशोक के वृक्षों से विभूषित होता है । यहाँ प्राणियों का शोक नष्ट हो जाता है । महापुराण 22.180
(3) अयोध्या के राजा अजितंजय की कैवल्यभूमि । महापुराण 54. 94-95
(4) चंदना की क्रीडा-स्थली । महापुराण 75.37