निरर्थक: Difference between revisions
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(न्या.सू./मू.व वृ./५/२/८) <span class="SanskritText">वर्णक्रमनिर्द्देशवन्निरर्थकम् ।८। यथा नित्य: शब्द: कचटतपा: जबडदशत्वात् झभञघढधषवदिति एवं प्रकारनिरर्थकम् । अभिधानाभिधेयभावानुपपत्तौ अर्थगतेरभावाद्वर्णा: क्रमेण निर्दिशन्त इति।८।</span> =<span class="HindiText">वर्णों के क्रम का नाममात्र कथन करने के समान निरर्थक निग्रहस्थान होता है। जैसे–क, च, ट, त, प ये शब्द नित्य हैं। ज, ब, ग, ड, द, श, त्व, होने के कारण, झ, भ, ञ, घ, ढ, ध, ष की नाईं। वाच्यवाचक भाव के नहीं बनने पर अर्थ का ज्ञान नहीं होने से वर्ण ही क्रम से किसी ने कह दिये हैं, इसलिए यह निरर्थक है। <strong>नोट</strong>—(श्लो.वा.४/१/३३/न्या.श्लो.१९७-२००/३८२)–में इसका निराकरण किया गया है।</span> | |||
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Revision as of 17:16, 25 December 2013
(न्या.सू./मू.व वृ./५/२/८) वर्णक्रमनिर्द्देशवन्निरर्थकम् ।८। यथा नित्य: शब्द: कचटतपा: जबडदशत्वात् झभञघढधषवदिति एवं प्रकारनिरर्थकम् । अभिधानाभिधेयभावानुपपत्तौ अर्थगतेरभावाद्वर्णा: क्रमेण निर्दिशन्त इति।८। =वर्णों के क्रम का नाममात्र कथन करने के समान निरर्थक निग्रहस्थान होता है। जैसे–क, च, ट, त, प ये शब्द नित्य हैं। ज, ब, ग, ड, द, श, त्व, होने के कारण, झ, भ, ञ, घ, ढ, ध, ष की नाईं। वाच्यवाचक भाव के नहीं बनने पर अर्थ का ज्ञान नहीं होने से वर्ण ही क्रम से किसी ने कह दिये हैं, इसलिए यह निरर्थक है। नोट—(श्लो.वा.४/१/३३/न्या.श्लो.१९७-२००/३८२)–में इसका निराकरण किया गया है।