किल्विषिक: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> वाद्य वादक देव । ये अन्य जातियों के देवों के आगे-आगे नगाड़े बजाते हुए चलते हैं । इनके पापकर्म का उदय रहता है । स्वल्प पुण्य के अनुसार स्वल्प ऋद्धियाँ ही इन्हें प्राप्त रहती है । ये अंत्यजों की भाँति अन्य देवों से बाहर रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 22.20,30, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.136, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.41 </span> | <span class="HindiText"> वाद्य वादक देव । ये अन्य जातियों के देवों के आगे-आगे नगाड़े बजाते हुए चलते हैं । इनके पापकर्म का उदय रहता है । स्वल्प पुण्य के अनुसार स्वल्प ऋद्धियाँ ही इन्हें प्राप्त रहती है । ये अंत्यजों की भाँति अन्य देवों से बाहर रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 22.20,30, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#136|हरिवंशपुराण - 3.136]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.41 </span> | ||
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वाद्य वादक देव । ये अन्य जातियों के देवों के आगे-आगे नगाड़े बजाते हुए चलते हैं । इनके पापकर्म का उदय रहता है । स्वल्प पुण्य के अनुसार स्वल्प ऋद्धियाँ ही इन्हें प्राप्त रहती है । ये अंत्यजों की भाँति अन्य देवों से बाहर रहते हैं । महापुराण 22.20,30, हरिवंशपुराण - 3.136, वीरवर्द्धमान चरित्र 14.41