गंगादेवी: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> गंगाकूटवासिनी गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी । इसने भरतेश के यहाँ आने पर एक हजार स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया था तथा उन्हें पादपीठ से युक्त दो रत्न-सिंहासन भेंट किये थे । सुलोचना ने भी पंच नमस्कार के प्रभाव से इस देवी को प्रसन्न करके जयकुमार आदि को नदी के प्रवाह में डूबने से बचाया था । <span class="GRef"> महापुराण 32.165-168, 37.10, 45. 144-151, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.50-52 </span> | <span class="HindiText"> गंगाकूटवासिनी गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी । इसने भरतेश के यहाँ आने पर एक हजार स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया था तथा उन्हें पादपीठ से युक्त दो रत्न-सिंहासन भेंट किये थे । सुलोचना ने भी पंच नमस्कार के प्रभाव से इस देवी को प्रसन्न करके जयकुमार आदि को नदी के प्रवाह में डूबने से बचाया था । <span class="GRef"> महापुराण 32.165-168, 37.10, 45. 144-151, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#50|हरिवंशपुराण - 11.50-52]] </span> | ||
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Revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
गंगाकुंड तथा गंगाकूट की स्वामिनी देवी–देखें लोक - 3.10 & देखें लोक - 5.4।
पुराणकोष से
गंगाकूटवासिनी गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी । इसने भरतेश के यहाँ आने पर एक हजार स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया था तथा उन्हें पादपीठ से युक्त दो रत्न-सिंहासन भेंट किये थे । सुलोचना ने भी पंच नमस्कार के प्रभाव से इस देवी को प्रसन्न करके जयकुमार आदि को नदी के प्रवाह में डूबने से बचाया था । महापुराण 32.165-168, 37.10, 45. 144-151, हरिवंशपुराण - 11.50-52