चैत्य: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> अकृत्रिम जिन-प्रतिमा । इन प्रतिमाओं के दर्शन का चिंतन करने से वेला के उपवास का, दर्शन का प्रयत्न की अभिलाषा करने से तेला उपवास का, जाने का आरंभ करने से चौला उपवास का, जो जाने लगता है वह पाँच उपवास का, जो कुछ दूर पहुंच जाता है वह बार उपवास का, जो बीच में पहुँच जाता है वह पंद्रह उपवास का, जो मंदिर के दर्शन करता है वह मासोपवास का, जो मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करता है वह छ: मास के उपवास का, जो द्वार में प्रवेश करता है वह एक वर्ष के उपवास का, जो प्रदक्षिणा देता है वह सौ वर्ष के उपवास का, जो जिनेंद्र का दर्शन करता है वह हजार वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है । इन प्रतिमाओं के समीप झारी, कलश, दर्पण, पात्री, शंख, सुप्रतिष्ठक, ध्वजा, धूपनी, दीप, कूर्च, पाटलिका, झांझ, मजीरे आदि अष्ट मंगलद्रव्य और एक सौ आठ अन्य उपकरण रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 5.191, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#13|पद्मपुराण - 6.13]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#32|पद्मपुराण - 6.32]]. 178-182, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.363-365 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अकृत्रिम जिन-प्रतिमा । इन प्रतिमाओं के दर्शन का चिंतन करने से वेला के उपवास का, दर्शन का प्रयत्न की अभिलाषा करने से तेला उपवास का, जाने का आरंभ करने से चौला उपवास का, जो जाने लगता है वह पाँच उपवास का, जो कुछ दूर पहुंच जाता है वह बार उपवास का, जो बीच में पहुँच जाता है वह पंद्रह उपवास का, जो मंदिर के दर्शन करता है वह मासोपवास का, जो मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करता है वह छ: मास के उपवास का, जो द्वार में प्रवेश करता है वह एक वर्ष के उपवास का, जो प्रदक्षिणा देता है वह सौ वर्ष के उपवास का, जो जिनेंद्र का दर्शन करता है वह हजार वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है । इन प्रतिमाओं के समीप झारी, कलश, दर्पण, पात्री, शंख, सुप्रतिष्ठक, ध्वजा, धूपनी, दीप, कूर्च, पाटलिका, झांझ, मजीरे आदि अष्ट मंगलद्रव्य और एक सौ आठ अन्य उपकरण रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 5.191, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#13|पद्मपुराण - 6.13]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#32|पद्मपुराण - 6.32]]. 178-182, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#363|हरिवंशपुराण - 5.363-365]] </span></p> | ||
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Revision as of 14:41, 27 November 2023
अकृत्रिम जिन-प्रतिमा । इन प्रतिमाओं के दर्शन का चिंतन करने से वेला के उपवास का, दर्शन का प्रयत्न की अभिलाषा करने से तेला उपवास का, जाने का आरंभ करने से चौला उपवास का, जो जाने लगता है वह पाँच उपवास का, जो कुछ दूर पहुंच जाता है वह बार उपवास का, जो बीच में पहुँच जाता है वह पंद्रह उपवास का, जो मंदिर के दर्शन करता है वह मासोपवास का, जो मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करता है वह छ: मास के उपवास का, जो द्वार में प्रवेश करता है वह एक वर्ष के उपवास का, जो प्रदक्षिणा देता है वह सौ वर्ष के उपवास का, जो जिनेंद्र का दर्शन करता है वह हजार वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है । इन प्रतिमाओं के समीप झारी, कलश, दर्पण, पात्री, शंख, सुप्रतिष्ठक, ध्वजा, धूपनी, दीप, कूर्च, पाटलिका, झांझ, मजीरे आदि अष्ट मंगलद्रव्य और एक सौ आठ अन्य उपकरण रहते हैं । महापुराण 5.191, पद्मपुराण - 6.13,पद्मपुराण - 6.32. 178-182, हरिवंशपुराण - 5.363-365