चंदना: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सातवीं पुत्री । इसे वनक्रीडा में आसक्त देखकर सुवर्णाभनगर का राजा मनोवेग विद्याधर हरकर ले गया था किंतु अपनी स्त्री के भय से इसे महा अटवी में छोड गया । कालक नामक भील ने इसे भीलराज सिंह को दिया । कामासक्त सिंह ने अपनी माँ के समझाने पर इसे अपने मित्र मित्रवीर की दे दिया । मित्रवीर से कौशांबी के सेठ वृषभदत्त ने इसे ले लिया । सेठानी भद्रा ने सशंकित होकर इसे बहुत ताड़ना दी । मिट्टी के पात्र में कांजी मिश्रित कोदों का भात इसे भोजन में दिया केशराशि कटवाकर और बेड़ियां डालकर इसे एक कमरे में कैद भी कर दिया था । यह सब कुछ होने पर भी यह धर्म पर अडिग रही । दैव योग से महावीर आहार के लिए आये । इसने पड़गाह कर आहार में वही नीरस भोजन दिया किंतु शील के प्रभाव से वह नीरस भोजन सरस हो गया । इसके बंधन खुल गये । शरीर सर्वांग सुंदर हो गया । पंचाश्चर्य होने पर सभी ने इसकी सराहना की । अंत में महावीर से दीक्षा लेकर इसने तप किया । तय के प्रभाव से यह महावीर के संघ में गणिनी बनी । आयु के अंत में यह स्त्रिलिंग छेदकर अच्युत स्वर्ग मे देव हुई । <span class="GRef"> महापुराण 74.338-347, 75.3-7, 35-70, 170, 177, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.70, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 1-6, 13.84-68, </span>तीसरे पूर्वभव में यह सोमिला नाम की एक ब्राह्मणी थी, दूसरे पूर्वभव में कनकलता नाम की राजपुत्री और पहले पूर्वभव में पद्मलता नाम की राजपुत्री हुई थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.73, 83, 98 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सातवीं पुत्री । इसे वनक्रीडा में आसक्त देखकर सुवर्णाभनगर का राजा मनोवेग विद्याधर हरकर ले गया था किंतु अपनी स्त्री के भय से इसे महा अटवी में छोड गया । कालक नामक भील ने इसे भीलराज सिंह को दिया । कामासक्त सिंह ने अपनी माँ के समझाने पर इसे अपने मित्र मित्रवीर की दे दिया । मित्रवीर से कौशांबी के सेठ वृषभदत्त ने इसे ले लिया । सेठानी भद्रा ने सशंकित होकर इसे बहुत ताड़ना दी । मिट्टी के पात्र में कांजी मिश्रित कोदों का भात इसे भोजन में दिया केशराशि कटवाकर और बेड़ियां डालकर इसे एक कमरे में कैद भी कर दिया था । यह सब कुछ होने पर भी यह धर्म पर अडिग रही । दैव योग से महावीर आहार के लिए आये । इसने पड़गाह कर आहार में वही नीरस भोजन दिया किंतु शील के प्रभाव से वह नीरस भोजन सरस हो गया । इसके बंधन खुल गये । शरीर सर्वांग सुंदर हो गया । पंचाश्चर्य होने पर सभी ने इसकी सराहना की । अंत में महावीर से दीक्षा लेकर इसने तप किया । तय के प्रभाव से यह महावीर के संघ में गणिनी बनी । आयु के अंत में यह स्त्रिलिंग छेदकर अच्युत स्वर्ग मे देव हुई । <span class="GRef"> महापुराण 74.338-347, 75.3-7, 35-70, 170, 177, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#70|हरिवंशपुराण - 2.70]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 1-6, 13.84-68, </span>तीसरे पूर्वभव में यह सोमिला नाम की एक ब्राह्मणी थी, दूसरे पूर्वभव में कनकलता नाम की राजपुत्री और पहले पूर्वभव में पद्मलता नाम की राजपुत्री हुई थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.73, 83, 98 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
( महापुराण/75/ श्लोक नं.)–
पुराणकोष से
वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सातवीं पुत्री । इसे वनक्रीडा में आसक्त देखकर सुवर्णाभनगर का राजा मनोवेग विद्याधर हरकर ले गया था किंतु अपनी स्त्री के भय से इसे महा अटवी में छोड गया । कालक नामक भील ने इसे भीलराज सिंह को दिया । कामासक्त सिंह ने अपनी माँ के समझाने पर इसे अपने मित्र मित्रवीर की दे दिया । मित्रवीर से कौशांबी के सेठ वृषभदत्त ने इसे ले लिया । सेठानी भद्रा ने सशंकित होकर इसे बहुत ताड़ना दी । मिट्टी के पात्र में कांजी मिश्रित कोदों का भात इसे भोजन में दिया केशराशि कटवाकर और बेड़ियां डालकर इसे एक कमरे में कैद भी कर दिया था । यह सब कुछ होने पर भी यह धर्म पर अडिग रही । दैव योग से महावीर आहार के लिए आये । इसने पड़गाह कर आहार में वही नीरस भोजन दिया किंतु शील के प्रभाव से वह नीरस भोजन सरस हो गया । इसके बंधन खुल गये । शरीर सर्वांग सुंदर हो गया । पंचाश्चर्य होने पर सभी ने इसकी सराहना की । अंत में महावीर से दीक्षा लेकर इसने तप किया । तय के प्रभाव से यह महावीर के संघ में गणिनी बनी । आयु के अंत में यह स्त्रिलिंग छेदकर अच्युत स्वर्ग मे देव हुई । महापुराण 74.338-347, 75.3-7, 35-70, 170, 177, हरिवंशपुराण - 2.70, वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 1-6, 13.84-68, तीसरे पूर्वभव में यह सोमिला नाम की एक ब्राह्मणी थी, दूसरे पूर्वभव में कनकलता नाम की राजपुत्री और पहले पूर्वभव में पद्मलता नाम की राजपुत्री हुई थी । महापुराण 75.73, 83, 98