नागकुमार: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> भवनवासी देव । ये और असुरकुमार परस्पर की मत्सरता से एक-दूसरे के प्रारंभ किये कार्यों में विघ्न करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 67. 173, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.81, 11.44 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> भवनवासी देव । ये और असुरकुमार परस्पर की मत्सरता से एक-दूसरे के प्रारंभ किये कार्यों में विघ्न करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 67. 173, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#81|हरिवंशपुराण - 2.81]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#11|हरिवंशपुराण - 2.11]].44 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- धवला 13/5,5,140/391/7 फणोपलक्षिता: नागा; =फण से उपलक्षित (भवनवासी देव) नाग कहलाते हैं।
- भवनवासी देवों का एक भेद है –देखें भवन - 1.4।
- इन देवों के इंद्रादि तथा लोक में इनका अवस्थान –देखें भवन - 2.2.4.1।
नागकुमार चरित विषयक तीन काव्य।
- मल्लिषेण (ई.श.11) कृत। 5 सर्ग, 507 पद्य। (ती./3/171)।
- धर्मधर (वि.1521) कृत। (ती./4/58)।
- माणिक्य राज (वि.1579) कृत। 9 संधि, 3300 श्लोक। (ती./4/237)।
पुराणकोष से
भवनवासी देव । ये और असुरकुमार परस्पर की मत्सरता से एक-दूसरे के प्रारंभ किये कार्यों में विघ्न करते हैं । महापुराण 67. 173, हरिवंशपुराण - 2.81,हरिवंशपुराण - 2.11.44