बुद्ध: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/149/293/14 </span><span class="SanskritText"> बुद्ध्यत सर्व जानातीति बुद्धः । </span>= <span class="HindiText">बुद्धि के द्वारा सब कुछ जानता है, इसलिए बुद्ध है ।<br /> | <span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/149/293/14 </span><span class="SanskritText"> बुद्ध्यत सर्व जानातीति बुद्धः । </span>= <span class="HindiText">बुद्धि के द्वारा सब कुछ जानता है, इसलिए बुद्ध है ।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong name="2" id="2"> प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध के लक्षण</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/10/9/472/9 </span><span class="SanskritText">स्वशक्तिपरोपदेशनिमित्तज्ञानभेदात् प्रत्येकबुद्ध-बोधितविकल्पाः ।</span> = <span class="HindiText">अपनी शक्तिरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से प्रत्येकबुद्ध होते हैं । और परोपदेशरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से बोधितबुद्ध होते हैं । <span class="GRef">( राजवार्तिक/10/9/8/647/11 )</span> ।</span><br /> | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/10/9/472/9 </span><span class="SanskritText">स्वशक्तिपरोपदेशनिमित्तज्ञानभेदात् प्रत्येकबुद्ध-बोधितविकल्पाः ।</span> = <span class="HindiText">अपनी शक्तिरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से प्रत्येकबुद्ध होते हैं । और परोपदेशरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से बोधितबुद्ध होते हैं । <span class="GRef">( राजवार्तिक/10/9/8/647/11 )</span> ।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/1022 </span><span class="PrakritGatha">कम्माण उवसमेण य गुरूवदेसं विणा वि पावेदि । सण्णाणसवप्पगमं जोए पत्तेयबुद्धी सा ।1022।</span> = <span class="HindiText">जिसके द्वारा गुरु उपदेश के बिना ही कर्मों के उपशम से सम्यग्ज्ञान और तप के विषय में प्रगति होती है, वह प्रत्येकबुद्धि ऋद्धि कहलाती है । <span class="GRef">( राजवार्तिक/3/36/3/202/24 )</span>; <span class="GRef">( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/34/125/11 )</span> ।<br /> | <span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/1022 </span><span class="PrakritGatha">कम्माण उवसमेण य गुरूवदेसं विणा वि पावेदि । सण्णाणसवप्पगमं जोए पत्तेयबुद्धी सा ।1022।</span> = <span class="HindiText">जिसके द्वारा गुरु उपदेश के बिना ही कर्मों के उपशम से सम्यग्ज्ञान और तप के विषय में प्रगति होती है, वह प्रत्येकबुद्धि ऋद्धि कहलाती है । <span class="GRef">( राजवार्तिक/3/36/3/202/24 )</span>; <span class="GRef">( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/34/125/11 )</span> ।<br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong>स्वयं बुद्ध का लक्षण -</strong> संबंधित विषय के लिए देखें - [[ स्वयंभू ]]।1। </span></li> | ||
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<div class="HindiText"> <p> भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभ देव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.38, 25.108 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभ देव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.38, 25.108 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- बुद्ध सामान्य का लक्षण
परमात्मप्रकाश टीका/1/13/21/5 बुद्धोऽनंतज्ञानादिचतुष्टयसहित इति । = केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टय सहित होने से आत्मा बुद्ध है । ( द्रव्यसंग्रह/ चूलिका/28/80/1)।
भावपाहुड़ टीका/149/293/14 बुद्ध्यत सर्व जानातीति बुद्धः । = बुद्धि के द्वारा सब कुछ जानता है, इसलिए बुद्ध है ।
- प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध के लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/10/9/472/9 स्वशक्तिपरोपदेशनिमित्तज्ञानभेदात् प्रत्येकबुद्ध-बोधितविकल्पाः । = अपनी शक्तिरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से प्रत्येकबुद्ध होते हैं । और परोपदेशरूप निमित्त से होने वाले ज्ञान के भेद से बोधितबुद्ध होते हैं । ( राजवार्तिक/10/9/8/647/11 ) ।
तिलोयपण्णत्ति/4/1022 कम्माण उवसमेण य गुरूवदेसं विणा वि पावेदि । सण्णाणसवप्पगमं जोए पत्तेयबुद्धी सा ।1022। = जिसके द्वारा गुरु उपदेश के बिना ही कर्मों के उपशम से सम्यग्ज्ञान और तप के विषय में प्रगति होती है, वह प्रत्येकबुद्धि ऋद्धि कहलाती है । ( राजवार्तिक/3/36/3/202/24 ); ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/34/125/11 ) ।
- स्वयं बुद्ध का लक्षण - संबंधित विषय के लिए देखें - स्वयंभू ।1।
पुराणकोष से
भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभ देव का एक नाम । महापुराण 24.38, 25.108