भावनाविधि: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इसमें अहिंसा आदि पाँचों व्रतों की पच्चीस भावनाओं को लक्ष्य कर दस दशमी, पाँच पंचमी, आठ अष्टमी और दो प्रतिपदा के कुल पच्चीस उपवास तथा एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा की जाती है । कुछ भावनाएँ निम्न प्रकार हैं—सम्यक्त्वभावना, विनयभावना, ज्ञानभावना, शीलभावना, सत्यभावना, ध्यानभावना, शुक्लध्यानभावना, संक्लेशनिरोधभावना, इच्छानिरोधभावना, संवरभावना, प्रशस्तयोगभावना, संवेगभावना, करुणाभावना, उद्वेगभावना, भोगनिवेदभावना, संसारनिर्वेदभावना, भुक्तिवैराग्यभावना, मोक्षभावना, मैत्री-भावना, उपेक्षाभावना और प्रमोदभावना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.112-116 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें अहिंसा आदि पाँचों व्रतों की पच्चीस भावनाओं को लक्ष्य कर दस दशमी, पाँच पंचमी, आठ अष्टमी और दो प्रतिपदा के कुल पच्चीस उपवास तथा एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा की जाती है । कुछ भावनाएँ निम्न प्रकार हैं—सम्यक्त्वभावना, विनयभावना, ज्ञानभावना, शीलभावना, सत्यभावना, ध्यानभावना, शुक्लध्यानभावना, संक्लेशनिरोधभावना, इच्छानिरोधभावना, संवरभावना, प्रशस्तयोगभावना, संवेगभावना, करुणाभावना, उद्वेगभावना, भोगनिवेदभावना, संसारनिर्वेदभावना, भुक्तिवैराग्यभावना, मोक्षभावना, मैत्री-भावना, उपेक्षाभावना और प्रमोदभावना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#112|हरिवंशपुराण - 34.112-116]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
एक व्रत । इसमें अहिंसा आदि पाँचों व्रतों की पच्चीस भावनाओं को लक्ष्य कर दस दशमी, पाँच पंचमी, आठ अष्टमी और दो प्रतिपदा के कुल पच्चीस उपवास तथा एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा की जाती है । कुछ भावनाएँ निम्न प्रकार हैं—सम्यक्त्वभावना, विनयभावना, ज्ञानभावना, शीलभावना, सत्यभावना, ध्यानभावना, शुक्लध्यानभावना, संक्लेशनिरोधभावना, इच्छानिरोधभावना, संवरभावना, प्रशस्तयोगभावना, संवेगभावना, करुणाभावना, उद्वेगभावना, भोगनिवेदभावना, संसारनिर्वेदभावना, भुक्तिवैराग्यभावना, मोक्षभावना, मैत्री-भावना, उपेक्षाभावना और प्रमोदभावना । हरिवंशपुराण - 34.112-116