मिथ्यादर्शनक्रिया: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> सांपरायिक आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में चौबीसवीं क्रिया । इसमें प्रोत्साहन आदि के द्वारा दूसरे के मिथ्यादर्शन के आरंभ तथा उसमें दृढ़ता लाने में तत्परता होती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58. 81 </span>मिथ्यादर्शनवाक्― सत्यप्रवाद पूर्व में कथित बारह प्रकार की भाषाओं में बारहवीं-मिथ्यामार्ग का उपदेश करने वाली भाषा । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 91, 97 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सांपरायिक आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में चौबीसवीं क्रिया । इसमें प्रोत्साहन आदि के द्वारा दूसरे के मिथ्यादर्शन के आरंभ तथा उसमें दृढ़ता लाने में तत्परता होती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#81|हरिवंशपुराण - 58.81]] </span>मिथ्यादर्शनवाक्― सत्यप्रवाद पूर्व में कथित बारह प्रकार की भाषाओं में बारहवीं-मिथ्यामार्ग का उपदेश करने वाली भाषा । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#91|हरिवंशपुराण - 10.91]], 97 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सांपरायिक आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में चौबीसवीं क्रिया । इसमें प्रोत्साहन आदि के द्वारा दूसरे के मिथ्यादर्शन के आरंभ तथा उसमें दृढ़ता लाने में तत्परता होती है । हरिवंशपुराण - 58.81 मिथ्यादर्शनवाक्― सत्यप्रवाद पूर्व में कथित बारह प्रकार की भाषाओं में बारहवीं-मिथ्यामार्ग का उपदेश करने वाली भाषा । हरिवंशपुराण - 10.91, 97