मेरुपंक्तिव्रत: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इसमें जंबूद्वीप, पूर्वघातकीखंड, पश्चिम घातकीखंड, पूर्व पुष्करार्ध, पश्चिम पुष्करार्ध इस प्रकार ढाई द्वीपों के पाँच मेरु, प्रत्येक मेरु के चार-चार वन तथा प्रत्येक वन के चार-चार चैत्यालयों को लक्ष्य करके अस्सी उपवास और बीस वन संबंधी बीस वेला किये जाते हैं । सौ स्थानों की सौ पारणाएँ करने का विधान होने से इसमें दो सौ बीस दिन लगते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.85 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें जंबूद्वीप, पूर्वघातकीखंड, पश्चिम घातकीखंड, पूर्व पुष्करार्ध, पश्चिम पुष्करार्ध इस प्रकार ढाई द्वीपों के पाँच मेरु, प्रत्येक मेरु के चार-चार वन तथा प्रत्येक वन के चार-चार चैत्यालयों को लक्ष्य करके अस्सी उपवास और बीस वन संबंधी बीस वेला किये जाते हैं । सौ स्थानों की सौ पारणाएँ करने का विधान होने से इसमें दो सौ बीस दिन लगते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#85|हरिवंशपुराण - 34.85]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
एक व्रत । इसमें जंबूद्वीप, पूर्वघातकीखंड, पश्चिम घातकीखंड, पूर्व पुष्करार्ध, पश्चिम पुष्करार्ध इस प्रकार ढाई द्वीपों के पाँच मेरु, प्रत्येक मेरु के चार-चार वन तथा प्रत्येक वन के चार-चार चैत्यालयों को लक्ष्य करके अस्सी उपवास और बीस वन संबंधी बीस वेला किये जाते हैं । सौ स्थानों की सौ पारणाएँ करने का विधान होने से इसमें दो सौ बीस दिन लगते हैं । हरिवंशपुराण - 34.85