वसंतसेना: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) वत्स्वोकसार नगर के राजा विद्याधर समुद्रसेन और रानी जयसेना की पुत्री । यह कनकशांति की दूसरी रानी थी । <span class="GRef"> महापुराण 63.117-119, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.40-41 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) वत्स्वोकसार नगर के राजा विद्याधर समुद्रसेन और रानी जयसेना की पुत्री । यह कनकशांति की दूसरी रानी थी । <span class="GRef"> महापुराण 63.117-119, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.40-41 </span></p> | ||
<p id="2">(2) कौशांबी के राजा विंध्यसेन की पुत्री । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_13#73|पद्मपुराण - 13.73-99]] </span>देखें [[ वसंतसुंदरी ]]</p> | <p id="2" class="HindiText">(2) कौशांबी के राजा विंध्यसेन की पुत्री । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_13#73|पद्मपुराण - 13.73-99]] </span>देखें [[ वसंतसुंदरी ]]</p> | ||
<p id="3">(3) विजयनगर के राजा महानद की रानी । यह हरिवाहन की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 8. 227-228 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) विजयनगर के राजा महानद की रानी । यह हरिवाहन की जननी थी । <span class="GRef"> महापुराण 8. 227-228 </span></p> | ||
<p id="4">(4) चंपापुरी की वेश्या कलिंगसेना की पुत्री । चारुदत्त इस पर आसक्त होकर इसके घर बारह वर्ष तक रहा । <span class="GRef"> महापुराण 72. 258, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 21. 41, 59, 64.134 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) चंपापुरी की वेश्या कलिंगसेना की पुत्री । चारुदत्त इस पर आसक्त होकर इसके घर बारह वर्ष तक रहा । <span class="GRef"> महापुराण 72. 258, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_21#41|हरिवंशपुराण - 21.41]], 59, 64.134 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
(1) वत्स्वोकसार नगर के राजा विद्याधर समुद्रसेन और रानी जयसेना की पुत्री । यह कनकशांति की दूसरी रानी थी । महापुराण 63.117-119, पांडवपुराण 5.40-41
(2) कौशांबी के राजा विंध्यसेन की पुत्री । पद्मपुराण - 13.73-99 देखें वसंतसुंदरी
(3) विजयनगर के राजा महानद की रानी । यह हरिवाहन की जननी थी । महापुराण 8. 227-228
(4) चंपापुरी की वेश्या कलिंगसेना की पुत्री । चारुदत्त इस पर आसक्त होकर इसके घर बारह वर्ष तक रहा । महापुराण 72. 258, हरिवंशपुराण - 21.41, 59, 64.134