शंखावर्त योनि: Difference between revisions
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<p class="HindiText">जीवों के उत्पन्न होने के स्थान को योनि कहते हैं । उसको दो प्रकार से विचार किया जाता है - शीत, उष्ण, संवृत, विवृत आदि की अपेक्षा और माता की योनि के आकार की अपेक्षा । <br /> | <p class="HindiText">जीवों के उत्पन्न होने के स्थान को योनि कहते हैं । उसको दो प्रकार से विचार किया जाता है - शीत, उष्ण, संवृत, विवृत आदि की अपेक्षा और माता की योनि के आकार की अपेक्षा । <br /> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2" id="2"> योनि के भेद (आकारों की अपेक्षा) </strong> <br /></span> | ||
(मूलाचार/1102) <span class="PrakritText">संख्यावत्तयजोणी कुम्मुण्णद वंसपत्तजोणी य ।</span> = <span class="HindiText">शंखावर्त योनि, कूर्मोन्नत योनि, वंशपत्र योनि - इस तरह तीन प्रकार की आकार योनि होती है । <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/81/203 )</span>। <br /> | (मूलाचार/1102) <span class="PrakritText">संख्यावत्तयजोणी कुम्मुण्णद वंसपत्तजोणी य ।</span> = <span class="HindiText">शंखावर्त योनि, कूर्मोन्नत योनि, वंशपत्र योनि - इस तरह तीन प्रकार की आकार योनि होती है । <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/81/203 )</span>। <br /> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="5" id="5"> शंखावर्त आदि योनियों का स्वामित्व</strong> </span><br /> | ||
(मूलाचार/1102-1103) <span class="PrakritText">तत्थ य संखावत्ते णियमादु विवज्जए गब्भो ।1102। कुम्मुण्णद जोणीए तित्थयरा दुविहचक्कवट्टीय । रामावि य जायंते सेसा सेसेसु जोणीसु ।1103।</span> = <span class="HindiText">शंखावर्त योनि में नियम से गर्भ नष्ट हो जाता है ।1102। कूर्मोन्नत योनि में तीर्थंकर, चक्री, अर्धचक्री दोनों, बलदेव ये उत्पन्न होते हैं और बाकी की योनियों में शेष मनुष्यादि पैदा होते हैं ।1103। <span class="GRef">( तिलोयपण्णत्ति/4/2952 )</span>; <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/81-82/203-204 )</span> । <br /> | (मूलाचार/1102-1103) <span class="PrakritText">तत्थ य संखावत्ते णियमादु विवज्जए गब्भो ।1102। कुम्मुण्णद जोणीए तित्थयरा दुविहचक्कवट्टीय । रामावि य जायंते सेसा सेसेसु जोणीसु ।1103।</span> = <span class="HindiText">शंखावर्त योनि में नियम से गर्भ नष्ट हो जाता है ।1102। कूर्मोन्नत योनि में तीर्थंकर, चक्री, अर्धचक्री दोनों, बलदेव ये उत्पन्न होते हैं और बाकी की योनियों में शेष मनुष्यादि पैदा होते हैं ।1103। <span class="GRef">( तिलोयपण्णत्ति/4/2952 )</span>; <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/81-82/203-204 )</span> । <br /> | ||
<ul><li | <ul><li class="HindiText">देखें [[ योनि ]]।</span></li></ul> | ||
Revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
जीवों के उत्पन्न होने के स्थान को योनि कहते हैं । उसको दो प्रकार से विचार किया जाता है - शीत, उष्ण, संवृत, विवृत आदि की अपेक्षा और माता की योनि के आकार की अपेक्षा ।
(मूलाचार/1102) संख्यावत्तयजोणी कुम्मुण्णद वंसपत्तजोणी य । = शंखावर्त योनि, कूर्मोन्नत योनि, वंशपत्र योनि - इस तरह तीन प्रकार की आकार योनि होती है । ( गोम्मटसार जीवकांड/81/203 )।
(मूलाचार/1102-1103) तत्थ य संखावत्ते णियमादु विवज्जए गब्भो ।1102। कुम्मुण्णद जोणीए तित्थयरा दुविहचक्कवट्टीय । रामावि य जायंते सेसा सेसेसु जोणीसु ।1103। = शंखावर्त योनि में नियम से गर्भ नष्ट हो जाता है ।1102। कूर्मोन्नत योनि में तीर्थंकर, चक्री, अर्धचक्री दोनों, बलदेव ये उत्पन्न होते हैं और बाकी की योनियों में शेष मनुष्यादि पैदा होते हैं ।1103। ( तिलोयपण्णत्ति/4/2952 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/81-82/203-204 ) ।
- देखें योनि ।