सुखासन: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> निराकुलतापूर्वक ध्यान करने के लिए व्यवहृत आसन । ऐसे दो आसन होते हैं― कायोत्सर्ग और पर्यकासन । <span class="GRef"> महापुराण 21. 70-71 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> निराकुलतापूर्वक ध्यान करने के लिए व्यवहृत आसन । ऐसे दो आसन होते हैं― कायोत्सर्ग और पर्यकासन । <span class="GRef"> महापुराण 21. 70-71 </span></p> | ||
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Revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
बोधपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 51में उद्धृत
“गुल्फोत्तानकरांगुष्ठरेखारोमालिनासिकाः। समदृष्टिः समाः कुर्यान्नातिस्तब्धो न वामनः।
= दोनों पाँव के टखने ऊपर की और करके अर्थात् दोनों पाँव को जंघाओं पर रखकर उनके ऊपर दोनों हाथों को ऊपर नीचे रखें ताकि हाथ के दोनों अँगूठे दोनों टखनों के ऊपर आ जायें। पेट व छाती की रोमावली व नासिका एक सीध में रहें। दोनों नेत्रों की दृष्टि भी नासिका पर पड़ती रहे। इस प्रकार सबको समान सीध में करके सीधे बैठें। न अधिक अकड़ कर और न झुककर। (इसको सुखासन कहते हैं।)
देखें आसन ।
पुराणकोष से
निराकुलतापूर्वक ध्यान करने के लिए व्यवहृत आसन । ऐसे दो आसन होते हैं― कायोत्सर्ग और पर्यकासन । महापुराण 21. 70-71