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<li | <li class="HindiText"><span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लो. महावत्स देश के सुदृष्टि राजा का पुत्र। (10/121-122) पुत्र केशव के मोह से दीक्षा न लेकर श्रावक के उत्कृष्ट व्रत ले कठिन तप किया (10/158)। अंत में दिगंबर हो समाधिमरण पूर्वक अच्युत स्वर्ग में देव हुआ। (10/169)। यह ऋषभदेव का पूर्व का चौथा भव है।-देखें [[ ऋषभदेव ]]।</span> </li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) तीर्थंकर वृषभदेव के चौथे पूर्वभव का जीव । यह जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में महावत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सुदृष्टि और रानी सुंदरनंदा का पुत्र था । इसने बाल्यावस्था में ही धर्म का स्वरूप समझ लिया था । इसका विवाह अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्री मनोरमा से हुआ था । केशव इसका पुत्र था । पुत्र के स्नेहवश यह गृह जीवन में ही रहा किंतु श्रावक के उत्कृष्ट पद ने स्थित रहकर कठिन तप करने लगा था । जीवन के अंत में इसने दिगंबर दीक्षा ले ली थी तथा समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 10. 121-124, 143-145, 158, 169-170, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.59 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) तीर्थंकर वृषभदेव के चौथे पूर्वभव का जीव । यह जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में महावत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सुदृष्टि और रानी सुंदरनंदा का पुत्र था । इसने बाल्यावस्था में ही धर्म का स्वरूप समझ लिया था । इसका विवाह अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्री मनोरमा से हुआ था । केशव इसका पुत्र था । पुत्र के स्नेहवश यह गृह जीवन में ही रहा किंतु श्रावक के उत्कृष्ट पद ने स्थित रहकर कठिन तप करने लगा था । जीवन के अंत में इसने दिगंबर दीक्षा ले ली थी तथा समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 10. 121-124, 143-145, 158, 169-170, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#59|हरिवंशपुराण - 9.59]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) नौवें तीर्थंकर पुष्पदंत का अपर नाम । <span class="GRef"> महापुराण 55.1, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-106 </span>देखें [[ पुष्पदंत ]]</p> | <p id="2" class="HindiText">(2) नौवें तीर्थंकर पुष्पदंत का अपर नाम । <span class="GRef"> महापुराण 55.1, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-106 </span>देखें [[ पुष्पदंत ]]</p> | ||
<p id="3">(3) चक्रवर्ती भरतेश की यष्टि । <span class="GRef"> महापुराण 37.948 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) चक्रवर्ती भरतेश की यष्टि । <span class="GRef"> महापुराण 37.948 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.125 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.125 </span></p> | ||
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Revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- नवें तीर्थंकर पुष्पदंत का अपरनाम - देखें पुष्पदंत
- महापुराण/ सर्ग/श्लो. महावत्स देश के सुदृष्टि राजा का पुत्र। (10/121-122) पुत्र केशव के मोह से दीक्षा न लेकर श्रावक के उत्कृष्ट व्रत ले कठिन तप किया (10/158)। अंत में दिगंबर हो समाधिमरण पूर्वक अच्युत स्वर्ग में देव हुआ। (10/169)। यह ऋषभदेव का पूर्व का चौथा भव है।-देखें ऋषभदेव ।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर वृषभदेव के चौथे पूर्वभव का जीव । यह जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में महावत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सुदृष्टि और रानी सुंदरनंदा का पुत्र था । इसने बाल्यावस्था में ही धर्म का स्वरूप समझ लिया था । इसका विवाह अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्री मनोरमा से हुआ था । केशव इसका पुत्र था । पुत्र के स्नेहवश यह गृह जीवन में ही रहा किंतु श्रावक के उत्कृष्ट पद ने स्थित रहकर कठिन तप करने लगा था । जीवन के अंत में इसने दिगंबर दीक्षा ले ली थी तथा समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुआ । महापुराण 10. 121-124, 143-145, 158, 169-170, हरिवंशपुराण - 9.59
(2) नौवें तीर्थंकर पुष्पदंत का अपर नाम । महापुराण 55.1, वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-106 देखें पुष्पदंत
(3) चक्रवर्ती भरतेश की यष्टि । महापुराण 37.948
(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.125