स्तेयानंद: Difference between revisions
From जैनकोष
Vandana Jain (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> रौद्रध्यान के चार भेदों में एक भेद । प्रमादपूर्वक दूसरे के धन को बलात् हरने का अभिप्राय रखना या उसमें हर्षित होना स्तेयानंद है । <span class="GRef"> महापुराण 21.42-43, 51, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.19, 24 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> रौद्रध्यान के चार भेदों में एक भेद । प्रमादपूर्वक दूसरे के धन को बलात् हरने का अभिप्राय रखना या उसमें हर्षित होना स्तेयानंद है । <span class="GRef"> महापुराण 21.42-43, 51, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#19|हरिवंशपुराण - 56.19]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#24|हरिवंशपुराण - 56.24]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
रौद्रध्यान के चार भेदों में एक भेद । प्रमादपूर्वक दूसरे के धन को बलात् हरने का अभिप्राय रखना या उसमें हर्षित होना स्तेयानंद है । महापुराण 21.42-43, 51, हरिवंशपुराण - 56.19,हरिवंशपुराण - 56.24