हीनाधिकमानोन्मान: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> अचौर्यव्रत के पाँच अतिचारों में चौथा अतिचार—माप तौल से कम वस्तु देना और अधिक लेना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.172 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अचौर्यव्रत के पाँच अतिचारों में चौथा अतिचार—माप तौल से कम वस्तु देना और अधिक लेना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#172|हरिवंशपुराण - 58.172]] </span></p> | ||
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Revision as of 15:31, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/6 तत्र ह्यल्पमूल्यलभ्यानि महार्ध्याणि द्रव्याणीति प्रयत्न:। प्रस्थादि मानम्, तुलाद्युन्मानम् । एतेन न्यूनेनान्यस्मै देयमधिकेनात्मनो ग्राह्यमित्येवमादिकूटप्रयोगो हीनाधिकमानौन्मानम् । =मान पद से प्रस्थादि मापने के बाट आदि लिये जाते हैं, और उन्मान पद से तौलने के तराजू आदि बाट लिये जाते हैं। कमती माप तौलने से दूसरों को देना, बढती माप तौलने से स्वयं लेना, इत्यादि कुटिलता से लेन-देन करना हीनाधिक मानोन्मान है।
राजवार्तिक/7/27/4/554/14इसमें माया का दोष आता है।
- विशेष जानकारी के लिए देखें माया /2
पुराणकोष से
अचौर्यव्रत के पाँच अतिचारों में चौथा अतिचार—माप तौल से कम वस्तु देना और अधिक लेना । हरिवंशपुराण - 58.172