हतसमुपत्तिक: Difference between revisions
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<span class="GRef">कषायपाहुड़ पुस्तक 5/4-22/$186/125/14</span> <p class="PrakritText">पुणो एदेसिमसंखे0 लोगमेत्तछट्ठाणाणं मज्झे अणंतगुणवड्ढि-अणंतगुणहाणि अट्ठंकुव्वंकाणं विच्चालेसु असंखे0 लोगमेत्तछट्ठाणाणि हदसमुपत्तियसंतकम्मछट्ठाणाणि भण्णंति। बंधट्ठाणघादेण बंधट्ठाणाणं विच्चालेसु जच्चंतरभावेण उप्पणतादो। </p> | <span class="GRef">कषायपाहुड़ पुस्तक 5/4-22/$186/125/14</span> <p class="PrakritText">पुणो एदेसिमसंखे0 लोगमेत्तछट्ठाणाणं मज्झे अणंतगुणवड्ढि-अणंतगुणहाणि अट्ठंकुव्वंकाणं विच्चालेसु असंखे0 लोगमेत्तछट्ठाणाणि हदसमुपत्तियसंतकम्मछट्ठाणाणि भण्णंति। बंधट्ठाणघादेण बंधट्ठाणाणं विच्चालेसु जच्चंतरभावेण उप्पणतादो। </p> | ||
<p class="HindiText">= इन असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानों के मध्य में अष्टांक और उर्वक रूप जो अणंतगुणवृद्धियाँ और अणंतगुणहानियाँ हैं उनके मध्य में जो असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थान हैं, उन्हें '''हतसमुत्पत्तिक''' सत्कर्मस्थान कहते हैं। क्योंकि बंधस्थान का घात होने से बंधस्थानों के बीच में ये जात्यंतर रूप से उत्पन्न हुए हैं।</p> | <p class="HindiText">= इन असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानों के मध्य में अष्टांक और उर्वक रूप जो अणंतगुणवृद्धियाँ और अणंतगुणहानियाँ हैं उनके मध्य में जो असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थान हैं, उन्हें '''हतसमुत्पत्तिक''' सत्कर्मस्थान कहते हैं। क्योंकि बंधस्थान का घात होने से बंधस्थानों के बीच में ये जात्यंतर रूप से उत्पन्न हुए हैं।</p><br> | ||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अनुभाग#1.7 | अनुभाग - 1.7]]। [[ अनुभाग#1.8.4 | अनुभाग - 1.8.4]]।</p> | <p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अनुभाग#1.7 | अनुभाग - 1.7]]। [[ अनुभाग#1.8.4 | अनुभाग - 1.8.4]]।</p> |
Latest revision as of 16:50, 16 February 2024
कषायपाहुड़ पुस्तक 5/4-22/ठाणप्ररूपणा सूत्र/पृष्ठ 330/14
संतकम्मट्ठाणाणि तिविहाणि-बंधसमुप्पत्तियाणि हदसमुप्पत्तियाणि हदहदसमुप्पत्तियाणि।
= सत्कर्मस्थान (अनुभाग) तीन प्रकार के हैं - बंधसमुत्पत्तिक, हतसमुत्पत्तिक और हतहतसमुत्पत्तिक।
धवला पुस्तक 12/4,2,7,35/29/5
`हदसमुप्पत्तियकम्मेण' इति वुत्ते पुव्विल्लमणुभागसंतकम्मं सव्वं घादिय अणंतगुणहीणं कादूण `ट्ठिदेण' इति वुत्तं होदि।
= `हतसमुत्पत्तिक कर्म वाले' ऐसा कहने पर पूर्व के समस्त अनुभाग सत्त्व का घात करके और उसे अनंत गुणा हीन करके स्थित हुए जीव के द्वारा, यह अभिप्राय समझना चाहिए।
कषायपाहुड़ पुस्तक 5/4-22/$470/331/1
हते समुत्पत्तिर्येषां तानि हतसमुत्पत्तिकानि।
= घात किये जाने पर जिन सत्कर्मस्थानों की उत्पत्ति होती है, उन्हें हतसमुत्पत्तिक कहते हैं।
कषायपाहुड़ पुस्तक 5/4-22/$186/125/14
पुणो एदेसिमसंखे0 लोगमेत्तछट्ठाणाणं मज्झे अणंतगुणवड्ढि-अणंतगुणहाणि अट्ठंकुव्वंकाणं विच्चालेसु असंखे0 लोगमेत्तछट्ठाणाणि हदसमुपत्तियसंतकम्मछट्ठाणाणि भण्णंति। बंधट्ठाणघादेण बंधट्ठाणाणं विच्चालेसु जच्चंतरभावेण उप्पणतादो।
= इन असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानों के मध्य में अष्टांक और उर्वक रूप जो अणंतगुणवृद्धियाँ और अणंतगुणहानियाँ हैं उनके मध्य में जो असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थान हैं, उन्हें हतसमुत्पत्तिक सत्कर्मस्थान कहते हैं। क्योंकि बंधस्थान का घात होने से बंधस्थानों के बीच में ये जात्यंतर रूप से उत्पन्न हुए हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुभाग - 1.7। अनुभाग - 1.8.4।