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<span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_4#37|पद्मपुराण - 4.37]]) </span><span class="SanskritGatha"> विधि: स्रष्टा विधाता च दैवं कर्म पुराकृतम् । ईश्वरश्चेति पर्याया विज्ञेया: कर्मवेधस:।।37।।</span>=<span class="HindiText">विधि, स्रष्टा, विधाता, दैव, पुराकृत कर्म और ईश्वर से सब कर्मरूपी ईश्वर के पर्याय वाचक शब्द हैं। अर्थात् इनके सिवाय अन्य कोई लोक का बनानेवाला नहीं।</span> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ कर्म#3.1 | कर्म - 3.1]]।</span> | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ कर्म#3.1 | कर्म - 3.1]]।</span> |
Revision as of 10:28, 26 February 2024
(पद्मपुराण - 4.37) विधि: स्रष्टा विधाता च दैवं कर्म पुराकृतम् । ईश्वरश्चेति पर्याया विज्ञेया: कर्मवेधस:।।37।।=विधि, स्रष्टा, विधाता, दैव, पुराकृत कर्म और ईश्वर से सब कर्मरूपी ईश्वर के पर्याय वाचक शब्द हैं। अर्थात् इनके सिवाय अन्य कोई लोक का बनानेवाला नहीं।
अधिक जानकारी के लिये देखें कर्म - 3.1।