स्तिबुक संक्रमण: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> लब्धिसार/जीव तत्त्व प्रदीपिका/273/330/9 </span> <span class="SanskritText">संज्वलनक्रोधस्य समयो नोच्छिष्टावलिमात्रनिषेकद्रव्यमपि संज्वलनमानस्योदयावल्यां समस्थितिनिषेकेषु प्रतिसमयमेकैकनिषेकक्रमेण संक्रम्य उदयमागमिष्यति। संज्वलनक्रोधोच्छिष्टावलिनिषेका: मानोदयावलिनिषेकेषु संक्रम्य अनंतरसमयेषूदयमिच्छंतीति तात्पर्यम् । अयमेव थिउक्कसंक्रम इति भण्यते।</span> =<span class="HindiText">संज्वलन क्रोध का एक समय कम उच्छिष्टावलिमात्र निषेक द्रव्य भी, अपनी समान स्थिति लिये जे संज्वलन मान की उदयावली के निषेक उनमें समय-समय एक-एक निषेक के अनुक्रम से संक्रमण होकर अनंतर समय में उदय होता है। तात्पर्य यह है कि उच्छिष्टावलि प्रमाण संज्वलन क्रोध का द्रव्य मान की उदयावली निषेकों में संक्रमण करके अनंतर समय में उदय में आते हैं। यह ही '''थिउक्क (स्तिबुक) संक्रमण''' है।</span></p> | |||
<p><span class="GRef"> धवला 5/1,7,18/211/8 </span><br><span class="HindiText"> <strong>विशेषार्थ</strong>- गति जाति आदि पिंड प्रकृतियों में से जिस किसी विवक्षित एक प्रकृति के उदय आने पर अनुदय प्राप्त शेष प्रकृतियों का जो उसी प्रकृति में संक्रमण होकर उदय आता है, उसे '''स्तिबुक संक्रमण''' कहते हैं। जैसे - एकेंद्रिय जीवों के उदय प्राप्त एकेंद्रिय जाति नामकर्म में अनुदय-प्राप्त द्वींद्रिय जाति आदि का संक्रमण होकर उदय में आना।</span></p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ संक्रमण#10 | संक्रमण - 10]]।</p> | |||
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Revision as of 09:56, 27 February 2024
लब्धिसार/जीव तत्त्व प्रदीपिका/273/330/9 संज्वलनक्रोधस्य समयो नोच्छिष्टावलिमात्रनिषेकद्रव्यमपि संज्वलनमानस्योदयावल्यां समस्थितिनिषेकेषु प्रतिसमयमेकैकनिषेकक्रमेण संक्रम्य उदयमागमिष्यति। संज्वलनक्रोधोच्छिष्टावलिनिषेका: मानोदयावलिनिषेकेषु संक्रम्य अनंतरसमयेषूदयमिच्छंतीति तात्पर्यम् । अयमेव थिउक्कसंक्रम इति भण्यते। =संज्वलन क्रोध का एक समय कम उच्छिष्टावलिमात्र निषेक द्रव्य भी, अपनी समान स्थिति लिये जे संज्वलन मान की उदयावली के निषेक उनमें समय-समय एक-एक निषेक के अनुक्रम से संक्रमण होकर अनंतर समय में उदय होता है। तात्पर्य यह है कि उच्छिष्टावलि प्रमाण संज्वलन क्रोध का द्रव्य मान की उदयावली निषेकों में संक्रमण करके अनंतर समय में उदय में आते हैं। यह ही थिउक्क (स्तिबुक) संक्रमण है।
धवला 5/1,7,18/211/8
विशेषार्थ- गति जाति आदि पिंड प्रकृतियों में से जिस किसी विवक्षित एक प्रकृति के उदय आने पर अनुदय प्राप्त शेष प्रकृतियों का जो उसी प्रकृति में संक्रमण होकर उदय आता है, उसे स्तिबुक संक्रमण कहते हैं। जैसे - एकेंद्रिय जीवों के उदय प्राप्त एकेंद्रिय जाति नामकर्म में अनुदय-प्राप्त द्वींद्रिय जाति आदि का संक्रमण होकर उदय में आना।
अधिक जानकारी के लिये देखें संक्रमण - 10।