स्वचारित्र: Difference between revisions
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<span class="HindiText">देखें [[ चारित्र#1.7 | चारित्र - 1.7]]।</span> | <span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/154 </span><span class="SanskritText">द्विविधं हि किल संसारिषु चरितं-स्वचरितं परचरितं च। स्वसमयपरसमयावित्यर्थ:।</span>= <span class="HindiText">संसारियों का चारित्र वास्तव में दो प्रकार का है—'''स्वचारित्र''' अर्थात् सम्यक्चारित्र और परचारित्र अर्थात् मिथ्याचारित्र। स्वसमय और परसमय ऐसा अर्थ है। (विशेष देखें [[ समय ]])</span>।<br /> | ||
<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/154/ </span><span class="SanskritText">तत्र स्वभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं स्वचरितं, परभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं परचरितम् ।</span>=<span class="HindiText">तहाँ स्वभाव में अवस्थित अस्तित्वस्वरूप वह '''स्वचारित्र''' है और परभाव में अवस्थित अस्तित्वस्वरूप वह परचारित्र है।</span><br /> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ चारित्र#1.7 | चारित्र - 1.7]]।</span> | |||
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पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/154 द्विविधं हि किल संसारिषु चरितं-स्वचरितं परचरितं च। स्वसमयपरसमयावित्यर्थ:।= संसारियों का चारित्र वास्तव में दो प्रकार का है—स्वचारित्र अर्थात् सम्यक्चारित्र और परचारित्र अर्थात् मिथ्याचारित्र। स्वसमय और परसमय ऐसा अर्थ है। (विशेष देखें समय )।
पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/154/ तत्र स्वभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं स्वचरितं, परभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं परचरितम् ।=तहाँ स्वभाव में अवस्थित अस्तित्वस्वरूप वह स्वचारित्र है और परभाव में अवस्थित अस्तित्वस्वरूप वह परचारित्र है।
अधिक जानकारी के लिये देखें चारित्र - 1.7।