शास्त्रदान: Difference between revisions
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<span align="justify" class="GRef">वसुनंदी श्रावकाचार/234-238 </span><span class="PrakritGatha">आगम-सत्थाइं लिहाविऊण दिज्जंति जं जहाजोग्गं। तं जाण सत्थदाणं जिणवयणज्झावणं च तहा।237। </span><span class="HindiText"> जो आगम-शास्त्र लिखाकर यथायोग्य पात्रों को दिये जाते हैं, उसे शास्त्रदान जानना चाहिए तथा जिनवचनों का अध्यापन कराना पढ़ाना भी शास्त्रदान है।237।</span><br /> | |||
class="GRef">वसुनंदी श्रावकाचार/234-238 </span><span class="PrakritGatha">आगम-सत्थाइं लिहाविऊण दिज्जंति जं जहाजोग्गं। तं जाण सत्थदाणं जिणवयणज्झावणं च तहा।237। </span><span class="HindiText"> जो आगम-शास्त्र लिखाकर यथायोग्य पात्रों को दिये जाते हैं, उसे शास्त्रदान जानना चाहिए तथा जिनवचनों का अध्यापन कराना पढ़ाना भी शास्त्रदान है।237।</span><br /> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[ दान ]]।</span> | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[ दान ]]।</span> |
Latest revision as of 14:55, 1 March 2024
सिद्धांतकोष से
वसुनंदी श्रावकाचार/234-238 आगम-सत्थाइं लिहाविऊण दिज्जंति जं जहाजोग्गं। तं जाण सत्थदाणं जिणवयणज्झावणं च तहा।237। जो आगम-शास्त्र लिखाकर यथायोग्य पात्रों को दिये जाते हैं, उसे शास्त्रदान जानना चाहिए तथा जिनवचनों का अध्यापन कराना पढ़ाना भी शास्त्रदान है।237।
अधिक जानकारी के लिए देखें दान ।
पुराणकोष से
दान का एक भेद। सत्पुरुषों का उपकार करने की इच्छा से शास्त्र का व्याख्यान करना या पठन-सामग्री देना शास्त्रदान है। इसके देने और लेने वाले, दोनों के कर्मों का संवर-निर्जरा और पुण्य होता है। यह निजानंद रूप मोक्ष-प्राप्ति का कारण है। महापुराण 56.66-67, 69, 72-73, 76