योग्यता: Difference between revisions
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Revision as of 15:25, 6 October 2014
- पर्यायों को प्राप्त करने की शक्ति− देखें - निक्षेप / ५ / १ ।
- क्षयोपशम से प्रगटी शक्ति ।
प्रमाण परीक्षा/पृ. ६७ योग्यताविशेषः पुनः प्रत्यक्षस्येव स्वविषयज्ञानावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमविशेष एव । = योग्यतारूप जो विशेष वह प्रत्यक्ष की भाँति अपने -अपने विषयभूत ज्ञानावरणीय तथा वीर्यान्तराय का क्षयोपशम विशेष ही है ।
श्लो. वा./३/१/१३/१०९/२६३ क्षयोपशमसंज्ञेयं योग्यतात्र समानता । = क्षयोपशम नाम यह योग्यता यहाँ.... ।
प. मु./२/१० स्वावरणक्षयोपशमलक्षणयोग्यतया हि प्रतिनियतमर्थं व्यवस्थापयति । = जानने रूप अपनी शक्ति को ढँकने वाले कर्म की क्षयोपशमरूप अपनी योग्यता से ही ज्ञान घट-पटादि पदार्थों की जुदी-जुदी रीति से व्यवस्था कर देता है । (स्या. मं./१६/२०९/१०)।
प्रमेयकमलमार्तण्ड/२-१० प्रतिनियतार्थव्यवस्थापको हि तत्तदावरणक्षयोपशमोऽर्थग्रहणशक्तिरूपः । तदुक्तम्-तल्लक्षणयोग्यता च शक्तिरेव । सैव ज्ञानस्य प्रतिनियतार्थव्यवस्थायामङ्गं नार्थोत्पत्त्यादि । = प्रतिनियत अर्थ की व्यवस्था करने वाली उस-उस आवरणकर्म के क्षयोपशम रूप अर्थ ग्रहण की शक्ति योग्यता कहलाती है । कहा भी है कि -क्षयोपशम लक्षणवाली योग्यता ही वह शक्ति है जो कि ज्ञान के प्रतिनियत अर्थ की व्यवस्था करने में प्रधान कारण है ।
न्या. दी./२/५/२७/९ का नाम योग्यता ? उच्यतेः स्वावरणक्षयोपशमः । प्रश्न−योग्यता किसे कहते हैं ? उत्तर−अपने आवरण (ज्ञान को ढँकने वाले कर्म) के क्षयोपशम को योग्यता कहते हैं ।
- स्वाभाविक शक्ति
श्लो. वा./१/१/१/१२६/५९०-५९१/२३ योग्यता हि कारणस्य कार्योत्पादनशक्तिः, कार्यस्य च कारणजन्यत्वशक्तिस्तस्याः प्रति-नियमः, शालिबीजाङ्कुरयोश्च भिन्नकालत्वाविशेषेऽपि शालिबीजस्यैव शाल्यङ्कुरजनने शक्तिर्न यवबीजस्य, तस्य यवाङ्कुरजनने न शालिबीजस्येति कथ्यते । तत्र कुतस्तच्छक्तेस्तादृशः प्रतिनियमः । स्वभावत इति चेन्न, अप्रत्यक्षत्वात् । = कार्यकारण भाव के प्रकरण में योग्यता का अर्थ कारण की कार्य को पैदा करने की शक्ति और कार्य की कारण से जन्यपने की शक्ति ही है । उस योग्यता का प्रत्येक विवक्षित कार्य कारणों में नियम करना यही कहा जाता है कि धान के बीज और धान के अंकुरों में भिन्न-भिन्न समय वृत्तिपने की समानता के होने पर भी साठी चावल के बीज की ही धान के अंकुरों को पैदा करने में शक्ति है । किन्तु जौ के बीज की धान के अंकुर पैदा करने में शक्ति नहीं है । तथा उस जौ के बीज की जौ के अंकुर पैदा करने में शक्ति है । हाँ, धान का बीज जौ का अंकुर नहीं उत्पन्न कर सकता है । यही योग्यता कही जाती है । प्रश्न−ऊपर के प्रकरण में कही गयी उस योग्यता रूप शक्ति का वैसा प्रत्येक में नियम आप कैसे कर सकेंगे ? उत्तर−यह शक्तियों का प्रतिनियम उन-उन पदार्थों के स्वभाव से हो जाता है । क्योंकि असर्वज्ञों को शक्तियों का प्रत्यक्ष नहीं होता है ।
- द्रव्य के परिणमन में उसकी योग्यता ही कारण है− देखें - कारण / II / १ / ८ ।