वस्तुत्व: Difference between revisions
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<p>आ.प./६ <span class="SanskritText">वस्तुनो भावो वस्तुत्वम्, सामान्यविशेषात्मकं वस्तु। </span>=<span class="HindiText"> वस्तु के भाव को वस्तुत्व कहते हैं। वह वस्तु सामान्य बिशेषात्मक है। [अथवा अर्थक्रियाकारी है अथवा गुण पर्यायों को वास देने वाली है ( | <p>आ.प./६ <span class="SanskritText">वस्तुनो भावो वस्तुत्वम्, सामान्यविशेषात्मकं वस्तु। </span>=<span class="HindiText"> वस्तु के भाव को वस्तुत्व कहते हैं। वह वस्तु सामान्य बिशेषात्मक है। [अथवा अर्थक्रियाकारी है अथवा गुण पर्यायों को वास देने वाली है (देखें - [[ वस्तु | वस्तु ]])। ]</span><br /> | ||
स.भ.त./३८/५ <span class="SanskritText">स्वपररूपोपादानापोहनव्यवस्थाप्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वम्। </span>=<span class="HindiText"> अपने स्वरूप के ग्रहण और अन्य के स्वरूप के त्याग से ही वस्तु के वस्तुत्व का व्यवस्थापन किया जाता है। </span></p> | स.भ.त./३८/५ <span class="SanskritText">स्वपररूपोपादानापोहनव्यवस्थाप्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वम्। </span>=<span class="HindiText"> अपने स्वरूप के ग्रहण और अन्य के स्वरूप के त्याग से ही वस्तु के वस्तुत्व का व्यवस्थापन किया जाता है। </span></p> | ||
Revision as of 15:26, 6 October 2014
आ.प./६ वस्तुनो भावो वस्तुत्वम्, सामान्यविशेषात्मकं वस्तु। = वस्तु के भाव को वस्तुत्व कहते हैं। वह वस्तु सामान्य बिशेषात्मक है। [अथवा अर्थक्रियाकारी है अथवा गुण पर्यायों को वास देने वाली है (देखें - वस्तु )। ]
स.भ.त./३८/५ स्वपररूपोपादानापोहनव्यवस्थाप्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वम्। = अपने स्वरूप के ग्रहण और अन्य के स्वरूप के त्याग से ही वस्तु के वस्तुत्व का व्यवस्थापन किया जाता है।