वारिषेण: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"><ol> | <p class="HindiText"><ol> | ||
<li> बृहत्कथा कोश/कथा नं १०/पृ.- राजा श्रेणिक का पुत्र था।३५। विद्युच्चर चोरने रानी चेलना का सूरदत्त नामक हार चुराकर।३६। कोतवाल के भय से श्मशान भूमि में ध्यानस्थ इनके आगे डाल दिया, जिसके कारण यह पकड़े गये। राजा ने प्राणदण्ड की आज्ञा की पर शस्त्र फूलों के हार बन गये। तब विरक्त हो दीक्षा ले ली।३५। सोमशर्मा मित्र को जबरदस्ती दीक्षा दिलायी।३९। परन्तु उसकी स्त्री सम्बन्धी शल्यको न मिटा सका। तब उसके स्थितिकरणार्थ उसे अपने महल में ले जाकर समस्त रानियों को शृंगारित होने की आज्ञा दी। उनका सुन्दर रूप देखकर उसके मनकी शल्य धुल गयी और पुनः दीक्षित हो धर्म में स्थित हुआ।४२। </li> | <li> बृहत्कथा कोश/कथा नं १०/पृ.- राजा श्रेणिक का पुत्र था।३५। विद्युच्चर चोरने रानी चेलना का सूरदत्त नामक हार चुराकर।३६। कोतवाल के भय से श्मशान भूमि में ध्यानस्थ इनके आगे डाल दिया, जिसके कारण यह पकड़े गये। राजा ने प्राणदण्ड की आज्ञा की पर शस्त्र फूलों के हार बन गये। तब विरक्त हो दीक्षा ले ली।३५। सोमशर्मा मित्र को जबरदस्ती दीक्षा दिलायी।३९। परन्तु उसकी स्त्री सम्बन्धी शल्यको न मिटा सका। तब उसके स्थितिकरणार्थ उसे अपने महल में ले जाकर समस्त रानियों को शृंगारित होने की आज्ञा दी। उनका सुन्दर रूप देखकर उसके मनकी शल्य धुल गयी और पुनः दीक्षित हो धर्म में स्थित हुआ।४२। </li> | ||
<li> भगवान् वीर के तीर्थ के एक अनुत्तरोपपादक - | <li> भगवान् वीर के तीर्थ के एक अनुत्तरोपपादक - देखें - [[ अनुत्तरोपपादक | अनुत्तरोपपादक। ]]</li> | ||
</ol></p> | </ol></p> | ||
Revision as of 15:26, 6 October 2014
- बृहत्कथा कोश/कथा नं १०/पृ.- राजा श्रेणिक का पुत्र था।३५। विद्युच्चर चोरने रानी चेलना का सूरदत्त नामक हार चुराकर।३६। कोतवाल के भय से श्मशान भूमि में ध्यानस्थ इनके आगे डाल दिया, जिसके कारण यह पकड़े गये। राजा ने प्राणदण्ड की आज्ञा की पर शस्त्र फूलों के हार बन गये। तब विरक्त हो दीक्षा ले ली।३५। सोमशर्मा मित्र को जबरदस्ती दीक्षा दिलायी।३९। परन्तु उसकी स्त्री सम्बन्धी शल्यको न मिटा सका। तब उसके स्थितिकरणार्थ उसे अपने महल में ले जाकर समस्त रानियों को शृंगारित होने की आज्ञा दी। उनका सुन्दर रूप देखकर उसके मनकी शल्य धुल गयी और पुनः दीक्षित हो धर्म में स्थित हुआ।४२।
- भगवान् वीर के तीर्थ के एक अनुत्तरोपपादक - देखें - अनुत्तरोपपादक।