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| दे. अर्हन्त।<br>अर्हत्पासा केवली-<br>कवि वृन्दावन (ई.१७९१-१८४८) द्वारा हिन्दी भाषामें रचित, भाग्य निर्णय विषयक छोटा-सा एक ग्रन्थ है। इसमें एक लकड़ीका पासा फैंककर, उस पर दिए गए चिह्नोंके आधारपर भाग्य सम्बन्धी बातें जानी जाती हैं।।<br>अर्हत्सेन-<br>सेन संघकी गुर्वावलीके अनुसार आप दिवाकरसेनके शिष्य तथा लक्षमणसेनके गुरु थे। समय-वि. ६८०-७२० (ई.६२३-६६३) विशेष दे. इतिहास/७/६।<br>१. ([[पद्मपुराण]] सर्ग १२३/१६७); २.([[पद्मपुराण]] / प्रस्तावना १९/पं.पन्नालाल)<br>अर्हदत्त-<br>मूलसंघ की पट्टावली के अनुसार भगवान् महावीरकी मूल परम्परामें लोहाचार्यके पश्चात्वाले चार आचार्योंमें आपका नाम है। समय-वी.नि.५६५-५८५, ई.३८-५८। <br>विशेष दे. इतिहास/४/४।<br>अर्हदत्त सेठ-<br>([[पद्मपुराण]] सर्ग/श्लो.नं.) वर्षायोगमें आहारार्थ पधारे गगन विहारी मुनियोंको ढोंगी जानकर उन्हें आहार न दिया। पीछे आचार्यके द्वारा भूल सुझाई जानेपर बहुत पश्चात्ताप किया/(९२/२०-३१)। फिर मथुरा जाकर उक्त मुनियोंको आहार देकर सन्तुष्ट हुआ। (९२/४२)।<br>अर्हद्बलि-<br>([[षट्खण्डागम]] पुस्तक संख्या १/प्र.१४,२८/H.L.Jain) पूर्वदेशस्थ पुण्ड्रवर्धन देशके निवासी आप बड़े भारी संघनायक थे। पंचवर्षीय युग-प्रतिक्रमणके समय आपने दक्षिण देशस्थ महिमा नगर (जिला सतारा) में एक बड़ा भारी यति सम्मेलन किया था। यतियोंमें कुछ पक्षपातकी गन्ध देखकर उसी समय आपने मूल संघको पृथक् पृथक् अनेक संघोमें विभक्त कर दिया था ।।१४।। आ धर सेनका पत्र पाकर इस सम्मेलनमेंसे ही आपने पुष्पदन्त और भूतबली नामक दो नवदीक्षित साधुओंको उनको सेवामें भेजा था। एकदेशांगधारी होते हुए भी संघ-भेद निर्माता होनेके कारण आपका नाम श्रुतधरोंकी परम्परामें नहीं रखा गया है।समय-वी.नि.५६५-५९३ (ई.३८-६६)। <br>(विशेष दे. परिशिष्ट/२/७)<br>अर्हद्भक्ति-<br>दे. भक्ति/१।<br>अलंकारोदय-<br>([[पद्मपुराण]] सर्ग ४/श्लो.नं.) पृथिवीके भीतर अत्यन्त गुप्त एक सुन्दर नगरी थी/१६२-१६४। इसको रावणके पूर्वज मेघवाहनके लिए राक्षसोंके इन्द्र भीम सुभीमने रक्षार्थ प्रदान की थी।<br>अलंभूषा-<br>रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी-दे. लोक ५/१३।<br>अलक-<br>एक ग्रह-दे. ग्रह।<br>अलका-<br>१. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर- दे. विद्याधर; २. पूर्वके दूसरे भवमें `रेवती' नामकी धाय थी। इसने कृष्णके पूर्व भवमें अर्थात् निर्नामिककी पर्यायमें उसका पालन किया था/१४४-१४५। वर्तमान भवमें भद्रिला नगरमें सुदृष्टि नामा सेठकी स्त्री हुई ।।१६७।। इसने कृष्ण के छः भाइयोंकी अपने छः मृत पुत्रोंके बदलेमें पाला था ।।३५-३९।।<br>[[Category:अ]] <br>[[Category:पद्मपुराण]] <br>[[Category:षट्खण्डागम]] <br> | | दे. अर्हन्त।<br>[[Category:अ]] <br> |