गणित I.2: Difference between revisions
From जैनकोष
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<li class="HindiText"><strong | <li class="HindiText"><strong name="I.2.6" id="I.2.6">कर्म व स्पर्धकादि निर्देश की अपेक्षा</strong> <br /> | ||
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि) <br /> | (गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि) <br /> | ||
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Revision as of 20:20, 28 February 2015
- द्रव्य क्षेत्रादि प्रमाणों की अपेक्षा सहनानियाँ
- लौकिक संख्याओं की अपेक्षा सहनानियाँ
गो.जी./अर्थ संदृष्टि/पृ. १/१३ तहाँ कहीं पदार्थनि के नाम करि सहनानी है। जहाँ जिस पदार्थ का नाम लिखा होई तहाँ तिस पदार्थ की जितनी संख्या होइ तितनी संख्या जाननी। जैसे-विधु=१ क्योंकि दृश्यमान चन्द्रमा एक है। निधि=९ निधियों का प्रमाण नौ है।
बहुरि कहीं अक्षरनिकौ अंकनि की सहनानीकरि संख्या कहिए हैं। ताका सूत्र–कटपयपुरस्थवर्णैर्नवनवपञ्चाष्टकल्पितै: क्रमश:। स्वरनञ्शून्यं संख्यामात्रोपरिमाक्षरं त्याज्यम् । अर्थात् <img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0046.gif" alt="" width="158" height="35" /> (ये नौ), <img src="JSKHtmlSample_clip_image004_0009.gif" alt="" width="147" height="36" /> (ये नौ) <img src="JSKHtmlSample_clip_image006_0011.gif" alt="" width="89" height="35" /> (ये पाँच), <img src="JSKHtmlSample_clip_image008_0011.gif" alt="" width="123" height="35" /> (ये आठ) बहुरि अकारादि स्वर वा ‘ञ’ वा ‘न’ करि बिन्दी जाननी। वा अक्षर की मात्रा वा कोई ऊपर अक्षर होइ जाका प्रयोजन किच्छु ग्रहण न करना।
(तात्पर्य यह है कि अंक के स्थान पर कोई अक्षर दिया हो तो तहां व्यञ्जन का अर्थ तो उपरोक्त प्रकार १, २ आदि जानना। जैसे कि–ङ, ण, म, श इन सबका अर्थ ५ है। और स्वरों का अर्थ बिन्दी जानना। इसी प्रकार कहीं ञ या न का प्रयोग हुआ तो वहाँ भी बिन्दी जानना। मात्रा तथा संयोगी अक्षरों को सर्वथा छोड़ देना। इस प्रकार अक्षर पर से अंक प्राप्त हो जायेगा।
(गो.सा./जी.का/की अर्थ संदृष्टि)
- लौकिक संख्याओं की अपेक्षा सहनानियाँ
लक्ष |
: ल |
जघन्य ज्ञान |
:ज.ज्ञा. |
कोटि(क्रोड़) |
:को. |
मूल |
:मूल |
लक्षकोटि |
:ल. को. |
जघन्य को आदि लेकर अन्य भी |
:ज= |
कोड़ाकोड़ी |
:को. को. |
||
अन्त:कोटाकोटि |
:अं.को.को. |
६५ को आदि लेकर अन्य भी |
:६५= |
जघन्य |
:ज. |
||
उत्कृष्ट |
:उ. |
एकट्ठी |
:१८= |
अजघन्य |
:अज. |
बादाल |
:४२= |
साधिक जघन्य |
: ज |
पणठ्ठी |
:६५= |
नोट—इसी प्रकार सर्वत्र प्रकृत नाम के आदि अक्षर उस उसकी सहनानी है।
- अलौकिक संख्याओं की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
संख्यात :Q
असंख्यात :<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0047.gif" alt="" width="12" height="22" />(a)
अनन्त :ख
जघन्य संख्यात :२
जघन्य असंख्यात :२
उत्कृष्ट असंख्यात :१५
जघन्य अनन्त :१६
उत्कृष्ट अनन्त :के
जघन्य परीतासंख्यात :१६
उत्कृष्ट परीतासंख्यात :<img src="JSKHtmlSample_clip_image004_0010.gif" alt="" width="24" height="26" />
जघन्य यक्तासंख्यात :२
उत्कृष्ट युक्तासंख्यात :<img src="JSKHtmlSample_clip_image006_0012.gif" alt="" width="21" height="26" />
जघन्य असंख्यातासं. :४
उत्कृष्ट असंख्यातासं. :<img src="JSKHtmlSample_clip_image008_0012.gif" alt="" width="41" height="26" />
जघन्य परीतानन्त :२५६
उत्कृष्ट परीतानन्त : <img src="JSKHtmlSample_clip_image010_0008.gif" alt="" width="63" height="26" />
जघन्य युक्तानन्त :ज.यु.अ.
उत्कृष्ट युक्तानन्त :<img src="JSKHtmlSample_clip_image012_0020.gif" alt="" width="86" height="26" />
जघन्य अनन्तानन्त (जघन्य युक्ता० का वर्ग) :ज.यु.अ.व
उत्कृष्ट अनन्तानन्त (केवल ज्ञान) : के
मध्यम अनन्तानन्त (सम्पूर्ण जीव राशि) : १६
संसारी जीव राशि :१३
सिद्ध जीव राशि :३
पुद्गल राशि(सम्पूर्ण जीव राशि का अनन्तगुणा):१६ख
काल समय राशि :१६ खख
आकाश प्रदेश राशि :१६ख.ख.ख.
केवलज्ञान का प्रथम मूल :के.मू.१
केवलज्ञान का द्वि. मूल :के.मू.२
केवलज्ञान :के
ध्रुव राशि : <img src="JSKHtmlSample_clip_image014_0007.gif" alt="" width="48" height="28" />
असंख्यात लोक प्रमाण राशि :९
(<img src="JSKHtmlSample_clip_image016_0005.gif" alt="" width="17" height="22" />१६२२ या १९/६) :<img src="JSKHtmlSample_clip_image018_0003.gif" alt="" width="27" height="24" />
- द्रव्य गणना की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.जी./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
सम्पूर्ण जीव राशि |
: १६ |
संसारी जीवराशि |
: १३ |
मुक्त जीव राशि |
: ३ |
पुद्गल राशि |
: १६ख |
काल समय राशि |
: १६ख.ख. |
आकाश प्रदेश राशि |
: १६ख.ख.ख. |
- पुद्गल परिवर्तन निर्देश की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
गृहीत द्रव्य |
: १ |
अगृहीत द्रव्य |
: ० |
मिश्र द्रव्य |
: × |
अनेक बार गृहीत अगृहीत या मिश्र द्रव्य का ग्रहण |
:दो बार लिखना |
- एकेन्द्रियादि जीव निर्देश की अपेक्षा
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
एकेन्द्रिय |
: ए |
विकलेन्द्रिय |
: वि |
पंचेन्द्रिय |
: पं |
असंज्ञी |
: अ |
संज्ञी |
: सं |
पर्याप्त |
: २ |
अपर्याप्त |
: ३ |
सूक्ष्म |
: सू |
बादर |
: बा. |
- कर्म व स्पर्धकादि निर्देश की अपेक्षा
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
समय प्रबद्ध : स∂
उत्कृष्ट समय प्रबद्ध : स३२
जघन्य वर्गणा : व
स्पर्धक शलाका : ९
एक स्पर्धकविषै वर्गणाएँ : ४
- क्षेत्रप्रमाणों की अपेक्षा सहनानियाँ
(ति.प./१/९३; १/३३२)
सूच्यंगुल |
|
: सू |
: २ |
प्रतरांगुल |
: सू२ |
: प्र |
: ४ |
घनांगुल |
: सू३ |
: घ |
: ६ |
जगश्रेणी |
|
: ज |
: ‒ |
जगत्प्रतर |
: ज२ |
: ज.प्र. |
: = |
लोकप्रतर |
: ज२ |
: लो.प्र. |
: = |
घनलोक |
: ज३ |
: लो |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image020_0001.gif" alt="" width="12" height="22" /> |
गो.सा.व ल.सा.की अर्थ संदृष्टि |
|||
रज्जू |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image022.gif" alt="" width="37" height="33" /> |
:<img src="JSKHtmlSample_clip_image024.gif" alt="" width="21" height="25" /> |
:<img src="JSKHtmlSample_clip_image026.gif" alt="" width="21" height="24" /> |
रज्जूप्रतर |
: रज्जू२ |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image028.gif" alt="" width="4" height="22" /> <img src="JSKHtmlSample_clip_image030.gif" alt="" width="24" height="24" />)२ |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image032.gif" alt="" width="12" height="31" /> |
रज्जू घन |
: रज्जू३ |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image028_0000.gif" alt="" width="4" height="22" /> <img src="JSKHtmlSample_clip_image030_0000.gif" alt="" width="24" height="24" />)३ |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image034.gif" alt="" width="25" height="33" /> |
सूच्यंगुल की अर्धच्छेद राशि |
: (पल्य की अर्धच्छेद राशि)२ |
|
: छे छे |
सूच्यंगुल की वर्गशलाका राशि |
: (पल्य की वर्गशलाका राशि)२ |
|
: व२ |
प्रतरांगुल की अर्धच्छेद राशि |
: (सूच्यंगुल की अर्धच्छेद राशि×२) |
|
: छे छे२ |
प्रतरांगुल की वर्गशलाका राशि |
|
: व२१‒ |
|
घनांगुल की अर्धच्छेद राशि |
|
: छे छे३ |
|
घनांगुल की वर्गशलाका राशि |
|
: व२ |
|
जगश्रेणी की अर्धच्छेद राशि |
: (पल्य की अर्धच्छेद राशि÷असं)×(घनांगुल की अर्धच्छेद राशि) |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image036.gif" alt="" width="53" height="25" /> या विछेछे३ (यदि वि=विरलन राशि) |
|
जगश्रेणी की वर्गशलाका राशि |
: घनांगुल की वर्गशलाका+<img src="JSKHtmlSample_clip_image038.gif" alt="" width="69" height="34" /> या व२+<img src="JSKHtmlSample_clip_image040.gif" alt="" width="26" height="30" /> |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image042.gif" alt="" width="33" height="38" /> |
|
जगत्प्रतर की अर्धच्छेद राशि |
: जगश्रेणी की अर्धच्छेद |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image044.gif" alt="" width="41" height="25" /> |
|
जगत्प्रतर की वर्गशलाका राशि |
: जगश्रेणी की वर्गशलाका+१ |
[<img src="JSKHtmlSample_clip_image046.gif" alt="" width="33" height="60" />] |
|
घनलोक की अर्धच्छेद राशि |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image048.gif" alt="" width="49" height="25" /> |
: वि छे छे९ (यदि वि=विरलन राशि) |
|
घनलोक की वर्गशलाका राशि |
|
[<img src="JSKHtmlSample_clip_image050.gif" alt="" width="33" height="56" /> ] |
- कालप्रमाणों की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का/की अर्थ संदृष्टि)
आवली |
: आ |
: २ |
अन्तर्मुहूर्त |
: संख्यात आ |
: २Q |
पल्य (ध.३पृ.८८) |
. प. |
: ६५५३६ |
सागर |
: सा. |
|
प्रतरावली |
: आवली२ : २२ |
: ४ |
घनावली |
: आवली३ : २३ |
: ८ |
पल्य की अर्धच्छेद राशि |
: छे |
|
पल्य की वर्गशलाका राशि |
: व |
|
सागर की अर्धच्छेद राशि |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image052.gif" alt="" width="13" height="36" /> अथवा |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image052_0000.gif" alt="" width="13" height="36" /> |
संख्यात आवली |
|
: २Q |