गुणधर: Difference between revisions
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<p class="HindiText">दिगम्बर आम्नाय धरसेनाचार्य की भा̐ति आपका स्थान पूर्वविदों की परम्परा में है। आपने भगवान वीर से आगत ‘पेज्ज दोसपाहुड़’ के ज्ञान को १८० गाथाओं में बद्ध किया जो आगे जाकर आचार्य परम्परा द्वारा यतिवृषभाचार्य को प्राप्त हुआ। इसी को विस्तृत करके उन्होंने ‘कषाय पाहुड़’ की रचना की। समय–वी नि.श.६ का पूर्वार्ध (वि.पू.श.१)। (विशेष | <p class="HindiText">दिगम्बर आम्नाय धरसेनाचार्य की भा̐ति आपका स्थान पूर्वविदों की परम्परा में है। आपने भगवान वीर से आगत ‘पेज्ज दोसपाहुड़’ के ज्ञान को १८० गाथाओं में बद्ध किया जो आगे जाकर आचार्य परम्परा द्वारा यतिवृषभाचार्य को प्राप्त हुआ। इसी को विस्तृत करके उन्होंने ‘कषाय पाहुड़’ की रचना की। समय–वी नि.श.६ का पूर्वार्ध (वि.पू.श.१)। (विशेष देखें - [[ कोश#1 | कोश / १]]/परिशिष्ट/३/२)</p> | ||
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दिगम्बर आम्नाय धरसेनाचार्य की भा̐ति आपका स्थान पूर्वविदों की परम्परा में है। आपने भगवान वीर से आगत ‘पेज्ज दोसपाहुड़’ के ज्ञान को १८० गाथाओं में बद्ध किया जो आगे जाकर आचार्य परम्परा द्वारा यतिवृषभाचार्य को प्राप्त हुआ। इसी को विस्तृत करके उन्होंने ‘कषाय पाहुड़’ की रचना की। समय–वी नि.श.६ का पूर्वार्ध (वि.पू.श.१)। (विशेष देखें - कोश / १/परिशिष्ट/३/२)