चारुदत्त: Difference between revisions
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<p class="HindiText">—(ह.पु./२१/श्लोक नं०) भानुदत्त वैश्य का पुत्र (६-१०); मित्रावती से विवाह हुआ (३८); संसार से विरक्त रहता था (३९); चचा रुद्रदत्त ने उसे वेश्या में आसक्त कर दिया (४०-६४); अन्त में तिरस्कार पाकर वेश्या के घर से निकला और अपने घर आया (६४-७४); व्यापार के लिए रत्नद्वीप में गया (७५); मार्ग में अनेकों कष्ट सहे (११२); | <p class="HindiText">—(ह.पु./२१/श्लोक नं०) भानुदत्त वैश्य का पुत्र (६-१०); मित्रावती से विवाह हुआ (३८); संसार से विरक्त रहता था (३९); चचा रुद्रदत्त ने उसे वेश्या में आसक्त कर दिया (४०-६४); अन्त में तिरस्कार पाकर वेश्या के घर से निकला और अपने घर आया (६४-७४); व्यापार के लिए रत्नद्वीप में गया (७५); मार्ग में अनेकों कष्ट सहे (११२); वहाँ मुनिराज के दर्शन किये (११३-१२६); बहुत धन लेकर घर लौटा (१२७)।</p> | ||
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Revision as of 20:20, 28 February 2015
—(ह.पु./२१/श्लोक नं०) भानुदत्त वैश्य का पुत्र (६-१०); मित्रावती से विवाह हुआ (३८); संसार से विरक्त रहता था (३९); चचा रुद्रदत्त ने उसे वेश्या में आसक्त कर दिया (४०-६४); अन्त में तिरस्कार पाकर वेश्या के घर से निकला और अपने घर आया (६४-७४); व्यापार के लिए रत्नद्वीप में गया (७५); मार्ग में अनेकों कष्ट सहे (११२); वहाँ मुनिराज के दर्शन किये (११३-१२६); बहुत धन लेकर घर लौटा (१२७)।