जयकुमार: Difference between revisions
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<p class="HindiText">―(म.पु./सर्ग/श्लोक) कुरुजांगल देश में हस्तिनागपुर के राजा व राजा श्रेयांस के भाई सोमप्रभ के पुत्र थे (४३/७९)। राज्य पाने के पश्चात् (४३/८७) आप भरत चक्रवर्ती के प्रधान सेनापति बन गये। दिग्विजय के समय मेघ नामा देव को जीतने के कारण आपका नाम मेघेश्वर पड़ गया (३२/६७-७४;४३/३१२-१३)। राजा अकम्पन की पुत्री सुलोचना के साथ विवाह हुआ (४३/३२६-३२९)। सुलोचना के लिए भरत के पुत्र अर्ककीर्ति के साथ युद्ध किया (४३/७१-७२)। जिसमें आपने अर्ककीर्ति को नागपाश में | <p class="HindiText">―(म.पु./सर्ग/श्लोक) कुरुजांगल देश में हस्तिनागपुर के राजा व राजा श्रेयांस के भाई सोमप्रभ के पुत्र थे (४३/७९)। राज्य पाने के पश्चात् (४३/८७) आप भरत चक्रवर्ती के प्रधान सेनापति बन गये। दिग्विजय के समय मेघ नामा देव को जीतने के कारण आपका नाम मेघेश्वर पड़ गया (३२/६७-७४;४३/३१२-१३)। राजा अकम्पन की पुत्री सुलोचना के साथ विवाह हुआ (४३/३२६-३२९)। सुलोचना के लिए भरत के पुत्र अर्ककीर्ति के साथ युद्ध किया (४३/७१-७२)। जिसमें आपने अर्ककीर्ति को नागपाश में बाँध लिया (४४/३४४-३४५)। अकम्पन व भरत दोनों ने मिलकर उनका मनमिटाव कराया (४५/१०-७२)। एक देवी द्वारा परीक्षा किये जाने पर भी शील से न डिगे (४७/५९-७३)। अन्त में भगवान् ऋषभदेव के ७१वें गणधर बने (४७/२८५-२८६)। पूर्व भव नं.४ में आप सेठ अशोक के पुत्र सुकान्त थे (४६/१०६,८८)। पूर्व भव नं.३ में ‘रतिवर’ (४६/८८)। पूर्व भव नं.२ में राजा आदित्यगति के पुत्र हिरण्यवर्मा (४६/१४५-१४६)। और पूर्व भव नं.१ में देव थे (४६/२५०-२५२)। नोट–युगपत् पूर्वभव के लिए ( देखें - [[ #46.364 | / ४६ / ३६४ ]]-६८)</p> | ||
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Revision as of 20:20, 28 February 2015
―(म.पु./सर्ग/श्लोक) कुरुजांगल देश में हस्तिनागपुर के राजा व राजा श्रेयांस के भाई सोमप्रभ के पुत्र थे (४३/७९)। राज्य पाने के पश्चात् (४३/८७) आप भरत चक्रवर्ती के प्रधान सेनापति बन गये। दिग्विजय के समय मेघ नामा देव को जीतने के कारण आपका नाम मेघेश्वर पड़ गया (३२/६७-७४;४३/३१२-१३)। राजा अकम्पन की पुत्री सुलोचना के साथ विवाह हुआ (४३/३२६-३२९)। सुलोचना के लिए भरत के पुत्र अर्ककीर्ति के साथ युद्ध किया (४३/७१-७२)। जिसमें आपने अर्ककीर्ति को नागपाश में बाँध लिया (४४/३४४-३४५)। अकम्पन व भरत दोनों ने मिलकर उनका मनमिटाव कराया (४५/१०-७२)। एक देवी द्वारा परीक्षा किये जाने पर भी शील से न डिगे (४७/५९-७३)। अन्त में भगवान् ऋषभदेव के ७१वें गणधर बने (४७/२८५-२८६)। पूर्व भव नं.४ में आप सेठ अशोक के पुत्र सुकान्त थे (४६/१०६,८८)। पूर्व भव नं.३ में ‘रतिवर’ (४६/८८)। पूर्व भव नं.२ में राजा आदित्यगति के पुत्र हिरण्यवर्मा (४६/१४५-१४६)। और पूर्व भव नं.१ में देव थे (४६/२५०-२५२)। नोट–युगपत् पूर्वभव के लिए ( देखें - / ४६ / ३६४ -६८)