दत्त: Difference between revisions
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<p class="HindiText">म.पु./६६/१०३-१०६ पूर्व के दूसरे भव में पिता का विशेष प्रेम न था। इस कारण युवराजपद प्राप्त न कर सके। इसलिए पिता से द्वेषपूर्वक दीक्षा धारणकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। | <p class="HindiText">म.पु./६६/१०३-१०६ पूर्व के दूसरे भव में पिता का विशेष प्रेम न था। इस कारण युवराजपद प्राप्त न कर सके। इसलिए पिता से द्वेषपूर्वक दीक्षा धारणकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से वर्तमान भव में सप्तम नारायण हुए।– देखें - [[ शलाका पुरुष#4 | शलाका पुरुष / ४ ]]।</p> | ||
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Revision as of 21:20, 28 February 2015
म.पु./६६/१०३-१०६ पूर्व के दूसरे भव में पिता का विशेष प्रेम न था। इस कारण युवराजपद प्राप्त न कर सके। इसलिए पिता से द्वेषपूर्वक दीक्षा धारणकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से वर्तमान भव में सप्तम नारायण हुए।– देखें - शलाका पुरुष / ४ ।