नंदिमित्र: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol class="HindiText"> | <ol class="HindiText"> | ||
<li> श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप द्वितीय श्रुतकेवली थे। समय‒वी.नि.७६-९२ (ई.पू./४५१-४३५) दृष्टि नं.३ के अनुसार वी.नि.८८-११६‒ देखें - [[ इतिहास#4.4 | इतिहास / ४ / ४ ]]। </li> | <li> श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप द्वितीय श्रुतकेवली थे। समय‒वी.नि.७६-९२ (ई.पू./४५१-४३५) दृष्टि नं.३ के अनुसार वी.नि.८८-११६‒ देखें - [[ इतिहास#4.4 | इतिहास / ४ / ४ ]]। </li> | ||
<li> (म.पु./६६/श्लोक)‒पूर्व भव.नं.२ में पिता द्वारा इनके चाचा को युवराज पद दिया गया। इन्होंने इसमें मन्त्री का हाथ समझ उससे वैर | <li> (म.पु./६६/श्लोक)‒पूर्व भव.नं.२ में पिता द्वारा इनके चाचा को युवराज पद दिया गया। इन्होंने इसमें मन्त्री का हाथ समझ उससे वैर बाँध लिया और, दीक्षा ले ली तथा मरकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए।१०३-१०५। वर्तमान भव में सप्तम बलभद्र हुए।१०६। (विशेष परिचय के लिए‒ देखें - [[ शलका पुरुष#3 | शलका पुरुष / ३ ]]। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Revision as of 22:20, 1 March 2015
- श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप द्वितीय श्रुतकेवली थे। समय‒वी.नि.७६-९२ (ई.पू./४५१-४३५) दृष्टि नं.३ के अनुसार वी.नि.८८-११६‒ देखें - इतिहास / ४ / ४ ।
- (म.पु./६६/श्लोक)‒पूर्व भव.नं.२ में पिता द्वारा इनके चाचा को युवराज पद दिया गया। इन्होंने इसमें मन्त्री का हाथ समझ उससे वैर बाँध लिया और, दीक्षा ले ली तथा मरकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए।१०३-१०५। वर्तमान भव में सप्तम बलभद्र हुए।१०६। (विशेष परिचय के लिए‒ देखें - शलका पुरुष / ३ ।