नवनीत: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong> नवनीत के निषेध का कारण</strong><br /> | <li><span class="HindiText"><strong> नवनीत के निषेध का कारण</strong><br /> | ||
देखें - [[ मांस#2 | मांस / २ ]], नवनीत, मदिरा, मांस, मधु ये चार महाविकृतियाँ हैं, जो काम, मद (अभिमान व नशा) और हिंसा को उत्पन्न करते हैं।</span><br /> | |||
र.क.श्रा./८५ <span class="SanskritGatha">अल्पफलबहुविघातान्मूलकमार्द्राणिशृङ्गवेराणि। नवनीत निम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ।८५।</span>=<span class="HindiText">फल थोड़ा परन्तु त्रस हिंसा अधिक होने से नवनीत आदि | र.क.श्रा./८५ <span class="SanskritGatha">अल्पफलबहुविघातान्मूलकमार्द्राणिशृङ्गवेराणि। नवनीत निम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ।८५।</span>=<span class="HindiText">फल थोड़ा परन्तु त्रस हिंसा अधिक होने से नवनीत आदि वस्तुएँ छोड़ने योग्य हैं।</span><br /> | ||
पु.सि.उ./१६३ <span class="SanskritText">नवनीतं च त्याज्यं योनिस्थानं प्रभूतजीवानाम् ।</span> =<span class="HindiText">[उसी वर्ण व जाति के (पु.सि.उ./७१)] बहुत से जीवों का उत्पत्तिस्थानभूत नवनीत त्यागने योग्य है।</span><br /> | पु.सि.उ./१६३ <span class="SanskritText">नवनीतं च त्याज्यं योनिस्थानं प्रभूतजीवानाम् ।</span> =<span class="HindiText">[उसी वर्ण व जाति के (पु.सि.उ./७१)] बहुत से जीवों का उत्पत्तिस्थानभूत नवनीत त्यागने योग्य है।</span><br /> | ||
सा.ध./२/१२<span class="SanskritGatha"> मधुवन्नवनीतं च मुञ्चेतत्रापि भूरिश:। द्विमुहूर्तात्परं शश्वत्संसजन्त्यङ्गिराशय:।१२।</span><br /> | सा.ध./२/१२<span class="SanskritGatha"> मधुवन्नवनीतं च मुञ्चेतत्रापि भूरिश:। द्विमुहूर्तात्परं शश्वत्संसजन्त्यङ्गिराशय:।१२।</span><br /> |
Revision as of 22:20, 1 March 2015
- नवनीत की अभक्ष्यता का निर्देश– देखें - भक्ष्याभक्ष्य / २ ।
- नवनीत के निषेध का कारण
देखें - मांस / २ , नवनीत, मदिरा, मांस, मधु ये चार महाविकृतियाँ हैं, जो काम, मद (अभिमान व नशा) और हिंसा को उत्पन्न करते हैं।
र.क.श्रा./८५ अल्पफलबहुविघातान्मूलकमार्द्राणिशृङ्गवेराणि। नवनीत निम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ।८५।=फल थोड़ा परन्तु त्रस हिंसा अधिक होने से नवनीत आदि वस्तुएँ छोड़ने योग्य हैं।
पु.सि.उ./१६३ नवनीतं च त्याज्यं योनिस्थानं प्रभूतजीवानाम् । =[उसी वर्ण व जाति के (पु.सि.उ./७१)] बहुत से जीवों का उत्पत्तिस्थानभूत नवनीत त्यागने योग्य है।
सा.ध./२/१२ मधुवन्नवनीतं च मुञ्चेतत्रापि भूरिश:। द्विमुहूर्तात्परं शश्वत्संसजन्त्यङ्गिराशय:।१२।
सा.ध./२/१२ में उद्धृत–अन्तमुहूर्तात्परत: सुसूक्ष्मा जन्तुराशय:। यत्र मूर्च्छन्ति नाद्यं तन्नवनीतं विवेकिभि:।१। =- मधु के समान नवनीत भी त्याग देना चाहिए; क्योंकि, उसमें भी दो मुहूर्त के पश्चात् निरन्तर अनेक सम्मूर्च्छन जीव उत्पन्न होते रहते हैं।१२।
- और किन्हीं आचार्यों के मत से तो अन्तर्मुहूर्त पश्चात् ही उसमें अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं इसलिए वह नवनीत विवेकी जनों द्वारा खाने योग्य नहीं है।१।