अक्ष: Difference between revisions
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१. [[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या १/१२/१०३ अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा। <br>= पहिचानता है, वा बोध करता है, व्याप्त होता है, जानता है, ऐसा `अक्ष' आत्मा है।<br>([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/१२/२/५३/११) ([[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति | तात्पर्यवृत्ति ]] टीका / गाथा संख्या १/२२) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ३६९/७९५) <br>२. पासा आदि <br>- | १. [[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या १/१२/१०३ अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा। <br>= पहिचानता है, वा बोध करता है, व्याप्त होता है, जानता है, ऐसा `अक्ष' आत्मा है।<br>([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/१२/२/५३/११) ([[प्रवचनसार]] / [[ प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति | तात्पर्यवृत्ति ]] टीका / गाथा संख्या १/२२) ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ३६९/७९५) <br>२. पासा आदि <br>- <b>देखे </b>[[निक्षेप]] ४। <br>३. भेद व भंग<br>- <b>देखे </b>[[गणित]] II/३/१,२।<br>[[Category:अ]] <br>[[Category:सर्वार्थसिद्धि]] <br>[[Category:गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] <br>[[Category:प्रवचनसार]] <br>[[Category:राजवार्तिक]] <br> |
Revision as of 05:19, 2 September 2008
१. सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या १/१२/१०३ अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा।
= पहिचानता है, वा बोध करता है, व्याप्त होता है, जानता है, ऐसा `अक्ष' आत्मा है।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या १/१२/२/५३/११) (प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा संख्या १/२२) (गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ३६९/७९५)
२. पासा आदि
- देखे निक्षेप ४।
३. भेद व भंग
- देखे गणित II/३/१,२।