अकंपन: Difference between revisions
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([[महापुराण]] सर्ग/श्लोक) काशी देश का राजा (४३/१२७) स्वयंवर मार्ग का संचालक था तथा भरत चक्रवर्ती का गृहपति था (४५/५१-५४) भरत के पुत्र अर्ककीर्ति तथा सेनापति जयकुमार में सुलोचना नामक कन्या के निमित्त संघर्ष होने पर (४४/३४४-३४५) अपनी बुद्धिमत्ता से अक्षमाला नामक कन्या अर्ककीर्ति के लिए दे सहज निपटारा किया (४५/१०-३०) अन्त में दीक्षा धार अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त किया। (४५/८७,२०४-२०६)<br> | ([[महापुराण]] सर्ग/श्लोक) काशी देश का राजा (४३/१२७) स्वयंवर मार्ग का संचालक था तथा भरत चक्रवर्ती का गृहपति था (४५/५१-५४) भरत के पुत्र अर्ककीर्ति तथा सेनापति जयकुमार में सुलोचना नामक कन्या के निमित्त संघर्ष होने पर (४४/३४४-३४५) अपनी बुद्धिमत्ता से अक्षमाला नामक कन्या अर्ककीर्ति के लिए दे सहज निपटारा किया (४५/१०-३०) अन्त में दीक्षा धार अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त किया। (४५/८७,२०४-२०६)<br> | ||
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== पुराणकोष से == | |||
<p id="1"> (1) तीर्थंकर महावीर के नवें गणधर । महापुराण 74. 374 वीरवरांग चरित्र 19.206-207 इन्हें आठवां गणधर भी कहा गया है । हरिवंशपुराण 3.41-43 [[ महावीर | देखें महावीर ]]</p> | |||
<p id="2">(2) वैशाली नगरी का राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में सातवां पुत्र । महापुराण 75.3-5 [[ चेटक | देखें चेटक ]]</p> | |||
<p id="3">(3) कृष्ण का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.69-72 [[ कृष्ण | देखें कृष्ण ]]</p> | |||
<p id="4">(4) यादव वंश में हुए राजा विजय का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.48</p> | |||
<p id="5">(5) उत्पलखेटपुर नगर के राजा वज्रजंघ का सेनापति । यह पूर्वभव में प्रभाकर नामक वैमानिक देव था । वहाँ से च्युत होकर अपराजित और आर्जवा का पुत्र हुआ । बड़ा होने पर यह वज्रजंघ का सेनापति हुआ । महापुराण 8.214-216 राजा वज्रजंघ और उनकी रानी श्रीमती के वियोगजनित शोक से संतप्त होकर इसने दृढधर्म मुनि से दीक्षा ली तथा उग्र तपश्चरण करते हुए देह त्यागकर अधोग्रैवेयक के सबसे नीचे के विमान में अहमिन्द्र पद पाया । महापुराण 9.91-93</p> | |||
<p id="6">(6) भरतक्षेत्र के काशी देश की वाराणसी नगरी का राजा । इसकी रानी का नाम सुप्रभादेवी था । इन दोनों के हेमांगद, केतुश्री, सुकान्त आदि सहस्र पुत्र और सुलोचना तथा लक्ष्मीमती दो पुत्रियाँ थी । महापुराण 43. 121-136, हरिवंशपुराण 12.9, यह नाथ वंश का शिरोमणि था । स्वयंवर विधि का इसी ने प्रवर्तन किया था । भरत चक्रवर्ती का यह गृहपति था । भरत के पुत्र अर्ककीर्ति तथा सेनापति जयकुमार में संघर्ष इसकी सुलोचना नामक कन्या के निमित्त हुआ था । इस संघर्ष को इसने अपनी दूसरी पुत्री अर्ककीर्ति को देकर सहज में ही शान्त कर दिया था । महापुराण 44.344-345, 45.10-54 अंत में यह अपने पुत्र हेमांगद को राज्य देकर रानी सुप्रभादेवी के साथ वृषभदेव के पास दीक्षित हो गया तथा इसने अनुक्रम से कैवल्य प्राप्त कर लिया । महापुराण 45.204-206 पांडवपुराण 3.21-24, 147 </p> | |||
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Revision as of 13:41, 5 May 2020
== सिद्धांतकोष से ==
(महापुराण सर्ग/श्लोक) काशी देश का राजा (४३/१२७) स्वयंवर मार्ग का संचालक था तथा भरत चक्रवर्ती का गृहपति था (४५/५१-५४) भरत के पुत्र अर्ककीर्ति तथा सेनापति जयकुमार में सुलोचना नामक कन्या के निमित्त संघर्ष होने पर (४४/३४४-३४५) अपनी बुद्धिमत्ता से अक्षमाला नामक कन्या अर्ककीर्ति के लिए दे सहज निपटारा किया (४५/१०-३०) अन्त में दीक्षा धार अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त किया। (४५/८७,२०४-२०६)
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर महावीर के नवें गणधर । महापुराण 74. 374 वीरवरांग चरित्र 19.206-207 इन्हें आठवां गणधर भी कहा गया है । हरिवंशपुराण 3.41-43 देखें महावीर
(2) वैशाली नगरी का राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में सातवां पुत्र । महापुराण 75.3-5 देखें चेटक
(3) कृष्ण का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.69-72 देखें कृष्ण
(4) यादव वंश में हुए राजा विजय का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.48
(5) उत्पलखेटपुर नगर के राजा वज्रजंघ का सेनापति । यह पूर्वभव में प्रभाकर नामक वैमानिक देव था । वहाँ से च्युत होकर अपराजित और आर्जवा का पुत्र हुआ । बड़ा होने पर यह वज्रजंघ का सेनापति हुआ । महापुराण 8.214-216 राजा वज्रजंघ और उनकी रानी श्रीमती के वियोगजनित शोक से संतप्त होकर इसने दृढधर्म मुनि से दीक्षा ली तथा उग्र तपश्चरण करते हुए देह त्यागकर अधोग्रैवेयक के सबसे नीचे के विमान में अहमिन्द्र पद पाया । महापुराण 9.91-93
(6) भरतक्षेत्र के काशी देश की वाराणसी नगरी का राजा । इसकी रानी का नाम सुप्रभादेवी था । इन दोनों के हेमांगद, केतुश्री, सुकान्त आदि सहस्र पुत्र और सुलोचना तथा लक्ष्मीमती दो पुत्रियाँ थी । महापुराण 43. 121-136, हरिवंशपुराण 12.9, यह नाथ वंश का शिरोमणि था । स्वयंवर विधि का इसी ने प्रवर्तन किया था । भरत चक्रवर्ती का यह गृहपति था । भरत के पुत्र अर्ककीर्ति तथा सेनापति जयकुमार में संघर्ष इसकी सुलोचना नामक कन्या के निमित्त हुआ था । इस संघर्ष को इसने अपनी दूसरी पुत्री अर्ककीर्ति को देकर सहज में ही शान्त कर दिया था । महापुराण 44.344-345, 45.10-54 अंत में यह अपने पुत्र हेमांगद को राज्य देकर रानी सुप्रभादेवी के साथ वृषभदेव के पास दीक्षित हो गया तथा इसने अनुक्रम से कैवल्य प्राप्त कर लिया । महापुराण 45.204-206 पांडवपुराण 3.21-24, 147