दर्शनपाहुड गाथा 6: Difference between revisions
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ऐसे पूर्वोक्त प्रकार सम्यक्त्व के बिना चारित्र, तप को निष्फल कहा है । अब सम्यक्त्व सहित सभी प्रवृत्ति सफल है - ऐसा कहते हैं -<br> | ऐसे पूर्वोक्त प्रकार सम्यक्त्व के बिना चारित्र, तप को निष्फल कहा है । अब सम्यक्त्व सहित सभी प्रवृत्ति सफल है - ऐसा कहते हैं -<br> | ||
सम्मत्तणाणदंसणबलवीरियवड्ढाण जे सव्वे । कलिकलुसपावरहिया वरणाणी होंति अइरेण ।।६।।<br> | <p align="center"> <b><br>सम्मत्तणाणदंसणबलवीरियवड्ढाण जे सव्वे ।<br> | ||
सम्यक्त्वज्ञानदर्शनबलवीर्यवर्द्धमाना: ये सर्वे । कलिकलुषपापरहिता: वरज्ञानिन: भवंति अचिरेण ।।६।।<br> | <br>कलिकलुसपावरहिया वरणाणी होंति अइरेण ।।६।।<br> | ||
<br>सम्यक्त्वज्ञानदर्शनबलवीर्यवर्द्धमाना: ये सर्वे ।<br> | |||
<p><b> अर्थ - </b> जो पुरुष सम्यक्त्वज्ञान, दर्शन, बल, वीर्य से वर्द्धमान हैं तथा कलिकलुषपाप अर्थात् इस पञ्चमकाल के मलिन पाप से रहित हैं, वे सभी अल्पकाल में वरज्ञानी अर्थात् केवलज्ञानी होते हैं । | <br>कलिकलुषपापरहिता: वरज्ञानिन: भवंति अचिरेण ।।६।।<br> | ||
<br>सम्यक्त्व दर्शन ज्ञान बल अर वीर्य से वर्द्धमान जो ।<br> | |||
<br>वे शीघ्र ही सर्वज्ञ हों, कलिकलुसकल्मस रहित जो ।।६।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> जो पुरुष सम्यक्त्वज्ञान, दर्शन, बल, वीर्य से वर्द्धमान हैं तथा कलिकलुषपाप अर्थात् इस पञ्चमकाल के मलिन पाप से रहित हैं, वे सभी अल्पकाल में वरज्ञानी अर्थात् केवलज्ञानी होते हैं । </p> | |||
<p><b> भावार्थ -</b> इस पंचमकाल में जड़-वक्र जीवों के निमित्त से यथार्थ मार्ग अपभ्रंश हुआ है । उसकी वासना से जो जीव रहित हुए वे यथार्थ जिनमार्ग के श्रद्धानरूप सम्यक्त्वसहित ज्ञान-दर्शन के अपने पराक्रम-बल को न छिपाकर तथा अपने वीर्य अर्थात् शक्ति से वर्द्धमान होते हुए प्रवर्तते हैं, वे अल्पकाल में ही केवलज्ञानी होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।।६।।<br> | <p><b> भावार्थ -</b> इस पंचमकाल में जड़-वक्र जीवों के निमित्त से यथार्थ मार्ग अपभ्रंश हुआ है । उसकी वासना से जो जीव रहित हुए वे यथार्थ जिनमार्ग के श्रद्धानरूप सम्यक्त्वसहित ज्ञान-दर्शन के अपने पराक्रम-बल को न छिपाकर तथा अपने वीर्य अर्थात् शक्ति से वर्द्धमान होते हुए प्रवर्तते हैं, वे अल्पकाल में ही केवलज्ञानी होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।।६।।<br> | ||
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Revision as of 05:15, 7 December 2008
ऐसे पूर्वोक्त प्रकार सम्यक्त्व के बिना चारित्र, तप को निष्फल कहा है । अब सम्यक्त्व सहित सभी प्रवृत्ति सफल है - ऐसा कहते हैं -
सम्मत्तणाणदंसणबलवीरियवड्ढाण जे सव्वे ।
कलिकलुसपावरहिया वरणाणी होंति अइरेण ।।६।।
सम्यक्त्वज्ञानदर्शनबलवीर्यवर्द्धमाना: ये सर्वे ।
कलिकलुषपापरहिता: वरज्ञानिन: भवंति अचिरेण ।।६।।
सम्यक्त्व दर्शन ज्ञान बल अर वीर्य से वर्द्धमान जो ।
वे शीघ्र ही सर्वज्ञ हों, कलिकलुसकल्मस रहित जो ।।६।।
अर्थ - जो पुरुष सम्यक्त्वज्ञान, दर्शन, बल, वीर्य से वर्द्धमान हैं तथा कलिकलुषपाप अर्थात् इस पञ्चमकाल के मलिन पाप से रहित हैं, वे सभी अल्पकाल में वरज्ञानी अर्थात् केवलज्ञानी होते हैं ।
भावार्थ - इस पंचमकाल में जड़-वक्र जीवों के निमित्त से यथार्थ मार्ग अपभ्रंश हुआ है । उसकी वासना से जो जीव रहित हुए वे यथार्थ जिनमार्ग के श्रद्धानरूप सम्यक्त्वसहित ज्ञान-दर्शन के अपने पराक्रम-बल को न छिपाकर तथा अपने वीर्य अर्थात् शक्ति से वर्द्धमान होते हुए प्रवर्तते हैं, वे अल्पकाल में ही केवलज्ञानी होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।।६।।